कृष्ण जन्माष्टमी / Krishna Janmashtami
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण जन्मभूमि पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हें और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्म स्थान के अलावा द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं , जिनमें भारी भीड़ होती है।
श्रीकृष्ण भक्तों को इस बार आराध्य देव का जन्मोत्सव मनाने के लिए एक नहीं, बल्कि पूरे दो दिन विशेष संयोग मिलेगा। इस वर्ष 2012 में 98 साल बाद यह खास संयोग बनने जा रहा है। इसके तहत जन्माष्टमी एक नहीं, पूरे दो दिन विशेष संयोग में मनाई जा सकेगी। वैसे तो शैव एवं वैष्णव संप्रदाय की मान्यतानुसार हर वर्ष जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है लेकिन इस वर्ष इस समयावधि में वृषभ के चंद्रमा की स्थिति रहने के साथ में ग्रहों का भी ऐसा योग बन रहा है जो पूर्व के वर्षों में नहीं रहा। इसलिए इस बार इसे महायोग माना जा रहा है। यह सयोंग अष्टमी तिथि व वृषभ के चंद्रमा की स्थिति के आधार पर 98 वर्षों बाद यह महायोग बनने जा रहा है। इसके तहत 9 व 10 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महापर्व मनाया जा सकेगा। हालांकि जन्माष्टमी का विशेष महत्व 10 अगस्त को ही रहेगा। हिंदू संस्कृति के तहत स्मार्त संप्रदाय के भक्त जहां 9 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व मनाएंगे, वहीं वैष्णवमार्गीय संप्रदाय के लिए इस महोत्सव को मनाने की तिथि 10 अगस्त रहेगी। 9 अगस्त दोपहर 12 बजे के बाद से अष्टमी तिथि का योग शुरू हो जाएगा जो 10 अगस्त की दोपहर 3 बजे तक रहेगा। इधर 10 अगस्त को अष्टमी उदय तिथि में होने से इन दो दिनों में जन्माष्टमी मनाई जा सकेगी।
भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभ के चंद्रमा में हुआ था और इसी दिन ((10 अगस्त)) वृषभ के चंद्रमा की स्थिति रहने से जन्मोत्सव का विशेष महत्व रहेगा। जबकि 9 अगस्त में मेष का चंद्रमा होने के साथ भरणी नक्षत्र रहेगा। सवा महीने का अंतराल भी प्रामाणिक है भाद्रपद में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व व द्वितीय भाद्रपद में 26 सितंबर को भगवान कृष्ण का जलवा पूजन ((डोल ग्यारस)) होने से भी यह महायोग अधिक प्रामाणिक है क्योंकि हिंदूधर्म में भी बच्चे के जन्म के सवा महीने बाद ही जलवा पूजन की प्रथा है। इसके पूर्व भाद्रपद माह एक होने से 20 दिनों में जलवा पूजन के योग बनते हैं ।
भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभ के चंद्रमा में हुआ था और इसी दिन ((10 अगस्त)) वृषभ के चंद्रमा की स्थिति रहने से जन्मोत्सव का विशेष महत्व रहेगा। जबकि 9 अगस्त में मेष का चंद्रमा होने के साथ भरणी नक्षत्र रहेगा। सवा महीने का अंतराल भी प्रामाणिक है भाद्रपद में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व व द्वितीय भाद्रपद में 26 सितंबर को भगवान कृष्ण का जलवा पूजन ((डोल ग्यारस)) होने से भी यह महायोग अधिक प्रामाणिक है क्योंकि हिंदूधर्म में भी बच्चे के जन्म के सवा महीने बाद ही जलवा पूजन की प्रथा है। इसके पूर्व भाद्रपद माह एक होने से 20 दिनों में जलवा पूजन के योग बनते हैं ।