Sunday, November 18, 2012

दशरथकृत शनि स्तोत्र


दशरथकृत शनि स्तोत्र
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः, कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध-पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
कर-न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः। अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः। कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां नमः। शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः। मन्दगतये शिरसे स्वाहा। अधोक्षजाय शिखायै वषट्। कृष्णांगाय कवचाय हुम्। शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट्। छायात्मजाय अस्त्राय फट्।
दिग्बन्धनः-
“ॐ भूर्भुवः स्वः”
ध्यानः-
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम्।।
रघुवंशेषु विख्यातो राजा दशरथः पुरा।
चक्रवर्ती स विज्ञेयः सप्तदीपाधिपोऽभवत्।।१
कृत्तिकान्ते शनिंज्ञात्वा दैवज्ञैर्ज्ञापितो हि सः।
रोहिणीं भेदयित्वातु शनिर्यास्यति साम्प्रतं।।२
Please log in www.astroswami.in for more information

श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र


श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र


श्री ऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र

ध्यान
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

।।मूल-पाठ।।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फल-सिद्धये।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।१
Please lo in www.astroswami.in for more information

शनि स्तोत्र (पिप्पलाद मुनि द्वारा रचित )


शनि स्तोत्र (पिप्पलाद मुनि द्वारा रचित )
शनि साढेसाती में प्राप्त होने वाले अशुभ फलों से बचने के लिये अपने धैर्य व सहनशक्ति में वृ्धि करने के लिये शनि के उपाय करने चाहिए. विपरीत समय में व्यक्ति की संघर्ष करने की क्षमता बढ जाती है. तथा ऎसे समय में व्यक्ति अपनी पूर्ण दूरदर्शिता से निर्णय लेता है. जिसके कारण निर्णयों में त्रुटियां होने की संभावनाएं कम हो जाती है.शनि साढेसाती के कष्टों में कमी करने के लिये शनि से संम्बन्धित अनेक उपाय किये जा सकते है. जिनमें शनि स्तोत्र (Shani Stotra Path) पाठ व शनि स्तोत्रम (Shani Stotratam) को विशेष महत्व दिया जाता है. शनि के शुभ फल पाने के लिये इस पाठ का जाप नियमित रुप से प्रतिदिन (रविवार को छोडकर) करना लाभकारी रहता है.शनि स्तोत्र  का पाठ करते समय व्यक्ति में शनि के प्रति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना अनिवार्य है. बिना श्रद्धा के लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं नहीं बनती है.
Please log in www.astroswami.in for more information

दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं


दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं


|| दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं ||

विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय कणामृताय शशिशेखरधारणाय |
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || १||
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय |
गंगाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || २||
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय |
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ३||
Please log in www.astroswami.in for more information

जीवन के लिए तंत्रिक उपाय


शास्त्रों में चिकित्सा के आठ अंग माने गए हैं, जिनमें एक भूत-विद्या भी है । ‘टोटका’ इस भूत-विद्या का ही एक सूक्ष्म अंग माना जाता है । कई विद्वान इसे पदार्थ-विज्ञान से भी जोड़ते हैं । जिस प्रकार प्राणियों के शरीर में एक अदृश्य-सी विशेष शक्ति विद्यमान रहती है, जिसे हम ‘तेजस्’ कहते हैं; उसी प्रकार उद्भिज प्राणियों और सभी जड़-चेतन पदार्थों में भी यह तेजस्-तत्व विद्यमान रहता है । ‘टोटका’ से सम्बन्धित क्रियाओं के पीछे यह तेजस् ही क्रियाशील होता है । अत: टोटके के गुण-दोष भी पदार्थों के द्रव्य-गुण की भाँति प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, बल्कि उनका प्रभाव अलक्षित और अप्रत्यक्ष होता है ।
हमारा देश कृषि-प्रधान देश है । देश के अधिकांश लोग गाँवों में निवास करते है । ग्रामीणजन पुरानी बातों में विशेष आस्था रखते हैं । इसका एक कारण यह भी है कि ग्रामीणजन प्राकृतिक पदार्थों व वनस्पतियों के गुण-दोष व तेजस्-तत्व से पारम्परिक रूप से परिचित होते हैं ।
यद्यपि टोटका-विज्ञान अथवा भूत-विद्या हमारे देश की पारम्परिक विद्या है, किन्तु इसका प्रचलन चीन, मिस्र आदि देशों में भी प्राचीनकाल से चला आ रहा है । आधुनिक ‘पेंâग-शुुई’ भारत की इस प्राचीन विद्या का ही चीनी-संस्करण है । नेपाल में तथा भारत के असम, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में इन अदृश्य-शक्ति-सम्पन्न टोटकों का प्रचलन आज भी है ।
प्रस्तुत तन्त्र-वुंâजिका में आमजनों में प्रचलित कुछ पारम्परिक  टोटकों का वर्णन है । आशा है, ये जनोपयोगी सिद्ध होंगे
यह टोटके व साधनायें विशेष रूप से उन पीड़ित व्यक्तियों के लिए हैं, जिन्हें यह आभास है कि उन पर कुछ कर दिया गया है अथवा करवाया गया है — जिससे वह सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं । अत: वह अपनी समस्या के अनुसार इनका प्रयोग करेंगे तो उनका जीवन भी सुखमय हो जायेगा
Please log in www.astroswami.in for more information

तन्त्र का जीवन में प्रयोग


रोजगार-वृद्धि के उपाय
(१) शुक्रवार के दिन भुने हुए चने, गुड़ और खट्टी-मीठी गोलियांँ मिलाकर उन्हें ८ वर्ष तक की आयु के बालकों में बाँट दें । लगातार सात शुक्रवार तक इस टोटका को करने से रोजगार में वृद्धि होने लगती है ।
(२) बुधवार के दिन लड्डू लाएँ और जो व्यक्ति रोजगार चलाता हो लड्डू सात बार उसके ऊपर से उतारकर रख दें । दूसरे दिन परिवार का कोई व्यक्ति सूरज उगने से पहले, जब तारे दिखलाई दे रहे हों, उठे और उन लड्डुओं को किसी भी सपेâद गाय को खिला दे और मुड़कर न देखे । रोजगार में वृद्धि होगी ।
(३) घर, दुकान अथवा कार्यालय में गाय के आगे खड़े होकर वंशी बजाते हुए भगवान कृष्ण का चित्र रखने पर क़र्जा नहीं चढ़ता और धन डूबने की सम्भावना भी कम ही रहती है ।
(४) भगवान शिव पर नित्य प्रात: जल चढ़ाने, प्रत्येक सोमवार को दीपक जलाने और प्रदोष का व्रत करने से ऋण से शीघ्र मुक्ति मिल जाती है ।
Please log in www.astroswami.in for more information

पंचक

  पंचक अर्थात (पांच नक्षत्रों का समूह)  यह एक  ऐसा(ज्योतिष) का   विशेष मुहूर्त दोष है जिसमें बहुत सारे कामों को करने की मनाही की जाती क्या यह वाकई हानिकारक होता है या फिर यह एक भ्रांति है। क्या पंचक के केवल उसके नाकारात्मक प्रभाव ही मिलते है या उसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं? इस लेख के माध्यम से हम जानेगे की पंचक क्या है इनमे कौन -२ से नक्षत्र होते हैं और हमारे जीवन पर इनका क्या प्रभाव रहता है
क्या होता है पंचक?
पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशिचक्र में 360 अंश एवं 27 नक्षत्र होते हैं। इस प्रकार एक नक्षत्र का मान 13 अंश एवं 20 कला या 800 कला का होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा 27 नक्षत्रों में से अंतिम पांच नक्षत्रों अर्थात धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, एवं रेवती में होता है तो उस अवधि को पंचक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। क्योंकि चन्द्रमा 27 दिनों में इन सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। अत: हर महीने में लगभग 27 दिनों के अन्तराल पर पंचक नक्षत्र आते ही रहते हैं।
please log in www.astroswami.in for more infomation