Friday, November 18, 2011

वास्तुशास्त्र और सावधानियां /Vastushastra and Precautions taken while building Your Home or Commercial Complex

वास्तुशास्त्र और सावधानियां /Vastushastra and Precautions taken while building Your Home or Commercial Complex
वास्तु शास्त्र एक वैदिक विद्या है जिसे कुछ अशस्त्रियों ने अपने ही  ढंग से इसकी व्याख्या कर के इसे अमर्यादित और अशास्त्रीय बना दिया है और जन - सामान्य के मन में इस विषय को,  जानने  वालों के प्रति मन में खिन्नता  भर दी  है वास्तुशास्त्र का विशद वर्णन अथर्ववेद के उपवेद स्थापत्य वेद में विस्तारपूर्वक मिलता है परन्तु कुछ अशस्त्रियों और कुछ पुस्तक छापने वालों ने इस महान विद्द्या का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, यत्र-तत्र से चार किताबें पकड़ी और एक किताब का निर्माण किया और पुस्तक बाज़ार में बिकने को उपलब्ध हो जाती है ना कोई शोध ना कोई अन्वेषण और फिर वही दोषारोपण का अनवरत कार्य शुरू, पुस्तक  का लेखक लिखने के पैसे लेकर फरार और पुस्तक बेचने वाला भी मोटी कमाई कर नो दो ग्यारह, परन्तु पुस्तक क्रेता जब उस पुस्तक के आधार पर अपने गृह का निर्माण कार्य सम्पन्न करता है तो अच्छे के स्थान पर बुरा होना शुरू होता है तो वास्तुशास्त्रियों को  अनेको विशेषणों से सुशोभित करता है कि ये वास्तुशास्त्री चोर है और ना  जाने कितने नामकरण कर दिए जाते है मनुष्य कि प्रकृति ही ऐसी है वह सफलता के लिए केवल अपने आपको ही उतरदायी मानता है परन्तु असफलता के लिए सदैव दूसरों को उतरदायी ठहराएगा इन सब  से बचने के लिए पाठकों से नम्र निवेदन है कि यदि आप दो चार दवाइयों के नाम जान ले तो आप डॉक्टर नहीं बन जायेंगे, मैंने स्वयं ऐसे अनेक मित्रों से बातचीत में सुना है फलां का मकान तो वास्तु के अनुसार नहीं बना है परन्तु मित्रों, क्या दो किताबो के पढ़ने से आप वास्तुशास्त्री बन सकते है क्या आपको गृह के उर्जा क्षेत्र का पता चल सकता है? मेरा अपना अनुभव कहता है – नहीं , क्या आप जिस व्यक्ति का घर बनाने में सहायता कर रहें  है? उसकी जन्म कुंडली देखी है ? क्या उसकी कुंडली के ग्रहों का घर से  मिलान किया है आदि –आदि
इससे पहले कि आप अपने घर को अभिशप्त कर लें किसी विद्द्वान वास्तुआचार्य का परामर्श लें और अपने घर और जीवन दोनों में खुशियों की बहार लाए वास्तु हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत वह महान विद्द्या है जो आपके जीवन को अँधेरे से बाहर निकाल कर प्रकाश और आपके दुर्भाग्य को आपके जीवन से निकाल कर सौभाग्य के प्रकाश में ला सकती है किसी भी भूखंड पर निर्माण आपके पुरे जीवन को ही प्रभावित नहीं करता वरन आपके पुरे जीवन को नियत्रण करता है भूखंड का चयन किस दिन और किस नक्षत्र और किस महूर्त में होना है यह भूखंड के क्रेता को पता होना चाहिए, फिर उस भूखंड की क्रेता की आवश्यकतानुसार भूखंड की प्रकृति का परीक्षण कर लिया जाना चाहिए, उसके बाद उसका शानदार महूर्त, निर्माण का उचित क्रम, प्राकृतिक उर्जा का आनुपातिक लय से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह भूखंड कितने वर्षों में कितनी बड़ी सफलता देगा जिस प्रकार जन्म कुंडली देख कर व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली देख कर उसके कुल सामर्थ्य का अनुमान लगाया जा सकता है उसी प्रकार से यदि भूखंड पर वास्तु के अनुसार निर्माण कार्य कराया जाए तो भूखंड से अकल्पनातित रूप से लाभ लिया जा सकता है
जो भवन वाणिज्यिक प्रयोग के लिए बनाया गया होता है और भवन निर्माता   केवल भवन निर्माण कर के उसे बेचने की इच्छा रखता है ऐसे भवन निर्माता वास्तु नियमों का जम कर उल्लघंन करते है किसी भी भूखंड पर भवन निर्माण एक साल तक चलते रहते है यस उससे भी अधिक अवधि में भी भवन निर्माण पूरा नहीं हो पाता और बहुमंजिला भवन की निर्माण में तीन-चार साल लग जाते हैं अधिकांश वास्तुदोष छ महीने से एक साल की अवधि में पतन करा देते हैं जबकि वास्तु नियमों की पालना इतने समय में ही भवन में और भवन निर्माता के जीवन को खुशियों से भर देता है, यदि एक वाणिज्यिक भवन में शुरू से ही भूखंड की ऊर्जा प्रणालियों को नष्ट-भ्रष्ट होने ना दिया जाए और निर्माण कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है नही तो आप के भवन का कार्य बिच में ही रुक जायेगा और आपको कारन भी समझ नहीं आएगा, यदि आप किसी भूखंड में ईशान कोण से दक्षिण कोण की और बढ़ेंगे तो आपके निर्माण कार्य में बिच में ही रुक जायंगे या फिर इतनी अधिक समस्याएं आएंगी कि आप का निर्माण कार्य सदा के लिए बंद हो जायेगा जबकि इसके विपरीत आप दक्षिण कोण से निर्माण शुरू करें और धीरे –धीरे उतर और ईशान कोण की और बढे और अंत तक ईशान कोण को निर्माण कार्य से बच्यें रखें तो आपका प्रजेक्ट न कवक शीघ्रता से पूरा होगा बल्कि आपको वित् की उपलब्धता में भी कोई कमी नहीं आएगी,
वाणिज्यिक भवन का अर्थ ही वित् से है यदि आपको लक्ष्मी प्रप्ति शीघ्रता से चहिये तो उतर दिशा का निर्माण वास्तु सम्मत ढंग से कराएँ ऐसे भवन में उतर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक निर्माण हो तो भवन स्वामी का विकास तीव्र गति से होगा और वह समाज में ऊँची स्थिति को प्राप्त होगा, दक्षिणमुखी भूखंडों में उया पश्च्मिमुखी भूखंडों में सबसे बड़ी समस्या यह रहती है की आजकल भूखंड सरकार द्वारा आबंटित किये जाते हैं तो समस्या इससे भी अधिक गम्भीर हो जाती है भवन निर्माण करने वाले को आगे और पीछे की और सरकारी नियमों के अनुसार जगह छोडनी पडती है तो ऐसे में केवल भवन निर्माता को त्याग परिचय देकर भूखंड के ईशान कोण और उतर कोण की रक्षा करनी चहिये और यदि दक्षिण के बराबर ही उतर के बराबर जगह छोड़ दी जाए तो भूखंड अच्छा परिणाम देता है वाणिज्यिक या ओद्योगिक भवनों में बड़े भूखंड होने के कारण इस तरह की सावधानी आसान है परन्तु घरों में अत्यधिक दुष्कर है यदि वास्तुशास्त्र आधारित भवन बनाने के परिकल्पना की जाये तो किसी भी भवन में प्रथम आधार भूखंड की दिशा होती है , उसके बाद शुभ महूर्त में नीवं का विधिविधान से शुभ प्रारम्भ, ये दो महत्वपूर्ण भाग अकसर लोग जानबूझकर या फिर भवन बनाने की जल्दी में ध्यान नहीं देते और बाद में अक्सर उस भवन को लेकर उसका निदान ढूढते फिरते हैं इसलिए इन दो महत्वपूर्ण अवसरों को अन्यथा ना ले,
वास्तुशास्त्र के अनुसार भूखंड के एक दिशा में ८ वास्तुद्वार होते हैं और ४ दिशाओं में ३२, इन में से हर दिशा में केवल एक या दो द्वारा ही शुभ होते हैं परन्तु यह समस्या 10 या १५ फुट की दुकानों में या इस से कम या ज्यादा  हो तो  परेशानी का कारण अधिक बनती है ओद्योगिक भवनों में या आजकल मॉल जो आधुनिक युग के देन है वहाँ मर्म स्थानों पर निर्माण करा कर अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारते है और अच्छे-भले निर्माण का लालच के वशीभूत हो कर कुछ ऐसे निर्माण करा लेते हैं जिसके बुरे परिणाम बाद में भुगतने पड़ते हैं वाणिज्यक भवनों में मुख्य द्धारों को पहले निश्चित कर लेना चाहिए ताकि उस स्थान के देवता आपको शुभ परिणाम पहले से ही देने लगते हैं वायव्य कोण कोण का द्धार आपको मृत्यु या कारागार भी भेज सकता है नैऋत्य कोण का दरवाजा आपको हानि देता है आग्नेय कोण का द्धार संतान सम्बन्धी समस्याएं देता है और ईशान कोण का द्धार अग्नि दुर्घटनाओं को देता है जितने भी व्यवसायिक निर्माण कराए जाते हैं यदि भारी निर्माण पूर्व दिशा की अपेक्षा पश्चिम में हो और उतर की अपेक्षा दक्षिण में हो तो तो धन का आगमन सहज और राज्य से अधिक सहायता और उन्नत वंश परम्परा का भविष्य सुनिश्चित हो जाता है प्राय: सुनने और पढ़ने में आता है की दक्षिण पश्चिम में भारी निर्माण अधिक लाभप्रद होता है परन्तु इसके विपरीत दक्षिण दिशा ही भूखंड की सर्वाधिक शक्तिशाली जगह है जन्म कुंडली में दशम भाव दक्षिण दिशा का स्वामी है और जो मनुष्य के कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है  अत: व्यावसयिक स्थानों में दक्षिण दिशा में बैठने का स्थान अधिक सुखद परिणाम देने वाला है वाराहमिहिर ने बड़े भवनों और राजाओं के प्रसादों के लिए और व्यावसायिक निर्माणों के लिए जो नियम दिए है यदि वास्तविकता के धरातल पर उन्हें उतारा जाए तो निश्चित ही व्यापारिक विस्तार को सैकड़ों गुना विस्तार दिया जा सकता है परन्तु यह भी निश्चित है की यह निर्माण दक्षिण दिशा में ही होंगे

श्री सूक्त / Shri Suktm

 //श्री सूक्त//
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।१।
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।३।
कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।४।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।५।
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।६।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।७।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।८।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।९।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।१०।
कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।११।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे ।
निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।१२।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।१३।
आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह .. १४..
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् .
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् .. १५..
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् .
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् .. १६..
पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे .
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् .. १७..
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने .
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे .. १८..
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि .
विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व .. १९..
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् .
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे .. २०..
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः .
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते .. २१..
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा .
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः .. २३..
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः . .
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् .. २४..
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे .
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् .. २५..
विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम् .
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् .. २६..
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि .तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् .. २७..
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते .
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः .. २८
// ऋग्वेदो उक्तं  श्री सूक्तं सम्पूर्ण//

श्री गणपति सहस्रनामस्तोत्र / Shri Ganpati Shsrnaamstotrm

श्री गणेश सहस्रनामस्तोत्र
ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ गणक्रीडाय नमः॥
ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐ मदोदराय नमः॥
ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐ विकटाय नमः॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ दुर्मुखाय नमः॥
ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐ विघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननाय नमः॥
ॐ भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दाय नमः॥
ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐ मदोत्कटाय नमः॥ ॐ हेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥ॐ महाबलाय नमः ॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ अलम्पटाय नमः ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ मेघनादाय नमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ॐ वरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥
ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्राय नमः ॥
ॐ अघनाशनाय नमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐ राजपुत्राय नमः ॥ॐ शकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः ॥
ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ॐ दुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥ॐ भूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशाय नमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः ॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥
ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः ॥
ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ मनोमयाय नमः ॥ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः ॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥
ॐ मेखलिन नमः ॥ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिने नमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥
ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐ पीताम्बराय नमः ॥ॐ खड्गधराय नमः ॥
ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥
ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐ योगाधिपाय नमः ॥ॐ तारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः ॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ॐ ध्वजिने नमः ॥ॐ देवदेवाय नमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकाय नमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐ नादाय नमः ॥
ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः ॥ॐ मृत्युञ्जयाय नमः ॥
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥
ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥
ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥
ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐ गौरीतेजोभुवे नमः ॥
ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐ यज्ञकायाय नमः ॥ॐ महानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥
ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ सर्वात्मने नमः ॥ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥
ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥
ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः ॥
ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐ वासवनासिकाय नमः ॥
ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥
ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐ तारकानखाय नमः ॥
ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः॥ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः ॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः ॥

Wednesday, November 9, 2011

वास्तुशास्त्र और दस दिशाएँ / Directions and Vastushastra

वास्तुशास्त्र को समझने के लिए दिशाओं का ज्ञान होना अत्यधिक आवश्यक है बिना दिशाओं के ज्ञान के आप कभी भी भूखंड पर भवन बना कर उससे लाभ नहीं उठा सकते इसलिए इसके लिए सबसे पहले आपके पास दिशा सूचक यन्त्र का होना अति आवश्यक है कुछ व्यक्ति सूर्य की दिशा से भी इस बात का ज्ञान कर लेतें  हैं कि पूर्व दिशा किधर है और उस आधार पर अन्य दिशाओं का ज्ञान भी कर लेते हैं परन्तु मेरी समझ में यह  अवैज्ञानिक है  और इस को आधार मान कर दिशाओं को निकलने में त्रुटि रह सकती है इसलिए भूखंड कि दिशाओं को जानने के दिक् सूचक यन्त्र का होना अत्यधिक आवश्यक है प्रथमतया दिक्सूचक यंत्र से ० शून्य अंश उतर का पता लगाये और फिर बाकि दिशाओं का पता लगाना बेहद आसान हो जाता है इन दिशाओं में जब दो दिशाएँ मिलती हैं तो उस कोण पर दो दिशाओं कि उर्जा मिलती है और ८ दिशाएँ और आकाश और पृथ्वी १० दिशाओं का निर्माण होता है भूखंड के मध्य स्थान ब्रह्रास्थान कहलाता है जिस प्रकार शरीर में नाभि का स्थान होता है उसी प्रकार भूखंड में यह स्थान ब्रह्रास्थान को प्राप्त है आइये आपको ८ दिशाओं का एक –एक कर के परिचय करते हैं
उत्तर  ------उत्तर दिशा के अधिष्ठित देवता कुबेर हैं जो धन और समृद्धि के द्योतक हैं। ज्योतिष के अनुसार बुद्ध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है। इस दिशा में स्थान खाली रखना या कच्ची भूमि छोड़ना धन और समृद्धि कारक है।
पूर्व---------पूर्व दिशा के देवता इंद्र हैं। आत्मा के कारक और रासृष्टि प्रकाश सूर्य पूर्व दिशा से उदय होते हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है। इस दिशा में कोई रूकावट नहीं होनी चाहिए। पूर्व दिशा में खुला स्थान परिवार के मुखिया की लम्बी उम्र का प्रतीक है।
पश्चिम --------वरूण पश्चिम दिशा के देवता है और ज्योतिष के अनुसार शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि , भाग्य और ख्याति का प्रतीक है।
दक्षिण--------यम दक्षिण दिशा के अधिष्ठित देव हैं। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख , सम्पन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ईशान कोण----------पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान कोण की संज्ञा दी गई है। यह दो दिशाओं का सर्वोतम मिलन स्थान है। यह स्थान भगवान शिव और जल का स्थान भी माना गया है। ईशान को सदैव स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए। इस स्थान पर जलीय स्रोतों जैसे कुंआ , बोरिंग वगैरह की व्यवस्था सर्वोतम परिणाम देती है। पूजा स्थान के लिए ईशान कोण को विशेष महत्व दिया जाता है। इस स्थान पर कूड़ा करकट रखना , स्टोर , टॉयलट वगैरह बनाना वर्जित है।
आग्नेय कोण-------दक्षिण और पूर्व के मध्य का कोणीय स्थान आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है। नाम से ही साफ हो जाता है कि यह स्थान अग्नि देवता का प्रमुख स्थान है इसलिए रसोई या अग्नि संबंधी (इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं। आग्नेय का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
नैऋत्य कोण--------दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा पर निरूति या पूतना का आधिपत्य है। ज्योतिष के अनुसार राहू और केतु इस दिशा के स्वामी हैं। इस क्षेत्र का मुख्य तत्व पृथ्वी है। पृथ्वी तत्व की प्रमुखता के कारण इस स्थान को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। इस दिशा में गड्ढे , बोरिंग , कुंए इत्यादि नहीं होने चाह
वायव्य कोण-----उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य के कोणीय स्थान को वायव्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा का मुख्य तत्व वायु है। इस स्थान का प्रभाव पड़ोसियों , मित्रों और संबंधियों से अच्छे या बुरे संबंधों का कारण बनता है। वास्तु के सही उपयोग से इसे सदोपयोगी बनाया जा सकता है।

गर्भपात को रोकने का तंत्र / To stop Abortion with Tantra

विवाह के बाद हर दम्पति की इच्छा होती है की अब उसका पद पिता और माता का होना चहिये परन्तु कई बार दुर्भाग्यवश या ग्रह गोचर के कारण स्त्री को गर्भपात हो जाता है जो बहुत ही दुःखदायी होता है यदि कोई भी पति पत्नी जिस के इस प्रकार का अनर्थ कई बार हुआ है वह इस तंत्र को करे अगली बार स्त्री के साथ इस प्रकार  की दुर्घटना नहीं होगी
विधि :- जब स्त्री गर्भधारण कर ले तो पति और पत्नी दोनों कृष्ण – राधा के मंदिर में गुरु – पुष्य नक्षत्र में  चांदी की बांसुरी राधा – कृष्ण को अर्पित करे तो गर्भपात नहीं होगा ये तंत्र अनुभूत है

Sunday, November 6, 2011

राशिफल - नवम्बर २०११ / Horscope- November 2011

मासिक राशिफल – नवम्बर -2011
मेष –Aries (चु चे चो ला ली लू ले लो अ )
इस मास के शुरू में इस राशि का स्वामी मंगल पंचम भाव में मित्र राशि का हो कर बैठेगा, परन्तु काफी मेहनत के पश्चात ही आपको आय के साधन प्राप्त होंगे मंगल की दृष्टि अष्टम भाव और एकादश भाव एवं द्वादश भाव पर होने के कारण आपको अचानक चोट या दुर्घटना का भय है इस राशि के विद्ध्यार्थियों को इस माह काफी सावधान रहने की आवशकता है उन्हें हुनमान चालीसा या बजरंग बाण या लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए नहीं तो विद्द्या में मनोनुकूल परिणाम नहीं आयंगे इस राशि के जातको को अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के प्रति सावधनी बरतनी चाहिए, १५ नवम्बर के पश्चात शनि अपनी स्थिति बदलेंगे और उनकी  नीच  विषमयी दृष्टि भाग्य भाव,लग्न और चतुर्थ भाव पर पडेगी जो इस राशि के जातको के लिए ठीक नहीं है कुछ अशुभ भ घटित हो सकता है  आय के स्रोत्र कम होंगे , स्वास्थ्य के प्रति थोडा सा सावधान रहें और सुख में कमी आएगी  मेष रही के जातको को शनि चालीसा , लंका कांड , शनि का दान देना अशुभ प्रभावों को कम कर देगा
वृष – Taurus ( इ उ ए ओ व् वि वृ वे वो )
वृष राशि पर ६ जून से  केतु का संचार है  जिस के कारण शरीर में थकावट और बीमारी की सम्भावना रहेगी और मानसिक परशानियां इस वर्ष के अंत तक आप के साथ रहेंगी १५ नवम्बर के पश्चात शनि अपनी उच्च राशि तुला में षष्ट  भाव से  संचार करेगा इसलिए शनि की दृष्टि अष्टम भाव , द्वादश भाव और तृतीय भाव होगी जो कोई भी ऐसा उतम मार्ग प्रशस्त नहीं करेगी केवल मात्र वह व्यक्ति जो न्यायालय में जिनके मामले लम्बित हैं उन्हें कुछ शुभ समाचार मिल सकते हैं इस पुरे मास संघर्षपूर्ण स्थितियां, अत्यधिक भाग दौड़ बनी रहेगी घर की आंतरिक समस्याए अभी बनी रहेंगीश्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करना आपके लिए अत्यधिक शुभ रहेगा किसी अंधे भिखारी को उनी कंबल देना आपके स्वास्थ्य में सुधर लाएगा
मिथुन – Gemini ( क कि कु घ ड छ के को ह )
मिथुन जातको को इस मास में अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना पडेगा क्योंकि उनके लग्न का स्वामी बुध स्वयं षष्ट भाव में शत्रु राशि गोचर कर रहा है बुध ,शुक्र और राहू तीनों की दृष्टि द्वादश भाव पर होने से खर्चो में अत्यधिक वृद्धि होगी तथा आकस्मिक रूप से आप अस्वस्थ होने की प्रबल सम्भावना है मानसिक अशांति परन्तु पराक्रम बना रहेगा लड़ने की क्षमता बनी रहेगी आय से अधिक खर्च रहेंगे परन्तु गुरु बृहस्पति के कारण आमदनी और  मदद मिलती रहेगी
कर्क – Cancer ( हि हू हे हो डा डी ड दे डो )
इस मास की १५ नवम्बर से शनि अपनी स्व राशि तुला से संचार करेगा परन्तु कर्क राशि के जातकों के लिए यह चतुर्थ भाव में संचरण करेगा और शनि की ढैया शुरू होने से इस मास घरेलू सुख में कमी, परेशानी, आर्थिक रूप से परेशानी और बिमारियों से सम्बन्धित परेशानियां बनेगी व्यवसाय की स्थिति मध्यम बनी रहेगी आय के साधन भी बनेगे परन्तु खर्चो की अधिकता रहेगी
सिंह – Leo ( म मि मु में मो टा टी टू टे )
इस मास सिंह राशि के जातको को क्रोध बहुत आएगा इस के कारण व्यर्थ और  निरर्थक विवादों में उलझेंगे, आपकी पत्नी से भी आपकी झगड़े पूरी सम्भावना है लड़ाई –झगड़े से बचे अन्यथा हानि होगी आय योग्य साधन निर्मित होंगे परिवार में सुख रहेगा यदि आप झगड़े से बचे , धन लाभ की पूरी सम्भावना है १५ नवम्बर के पश्चात थोड़ी सी सुख
कन्या – Virgo ( टो पा पी पू ष ण ठ पे पो )
इस राशि के जातको के उपर शनि की साढ़ेसाती के कारण मानसिक तनाव एवं घरेलू उलझने बढेंगी १५ नवम्बर के पश्चात शनि दूसरे भाव और अपनी स्वराशि तुला से गोचर करेगा जो कन्या राशि वालों को कुछ राहत प्रदान करेगा परन्तु पारिवारिक सुख में कमी, अध्यात्म की और उन्मुख होंगे, परन्तु आर्थिक क्षेत्र में आपको अत्यधिक लग्न से काम करना पडेगा श्री कार्तिक माहात्म्य का पाठ करना शुभ रहेगा
तुला –  Libra ( रा री रु रे रो ता ति तु ते )
तुला राशि पर इस समय शनि की साढ़ेसाती चल रही है जो १५ नवम्बर २०११ को आद्रा नक्षत्र एवं मिथुन राशि के चन्द्र के समय १०:११मिनट पर शनि देव कन्याराशी को छोड़कर तुला राशि में प्रवेश करेंगे इसलिए तुला राशि वालों के लिए साढ़ेसाती में घरेलू झगड़े तो बने रहेंगे परन्तु व्यापार,धन सम्पति का लाभ होगा उनका प्रभाव क्षेत्र  बढ़ेगा और लोगों में सम्मान बढ़ेगा मित्रों से सावधान रहने की आवश्यकता है इस मास के अंत में थोडा खर्च बढ़ेगा तथा मन में तनाव बना रहेगा कार्तिक माहात्म्य का पाठ करना शुभ रहेगा
वृश्चिक – Scorpio ( तो न नी नु ने नो या यी यु)
इस राशि का स्वामी मंगल अपनी मित्र राशि सिंह में गोचर कर रहा है वृश्चिक राशि के जातको को जो शारीरिक कष्ट अभी तक थे वो धीरे धीरे दूर हो जायंगे १५ नवम्बर को शनि द्वादश भाव में गोचर करेगा जिससे शारीरिक कष्ट खत्म होंगे विद्द्या के क्षेत्र में असफलता मिलने की सम्भावना अधिक है परन्तु शिरोवेदना अभी भी रहगी इस राशि में राहू का संचार होने से मानसिक तनाव और स्वस्थ सम्बन्धी परेशानियां होंगी भौम गायत्री का पाठ करना शुभ रहेगा
धनु– Sagittarius ( ये यो भा भी भू ध फ ढ भे )
इस मास पिछले मास के बिगड़े हुए कार्य बनेगे , मंगल सिंह राशि में से गोचर करेगा जो इस राशि के जातको के लिए आर्थिक रूप से अच्छा है १५ नवम्बर से शनि अपनी स्वराशि तुला एकादश भाव में होगा जो जातक को आर्थिक क्षेत्र में तो सहायता करेगा परन्तु लग्न पर दृष्टि होने के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंताएं भी बढाएगा पारिवारिक सुखों में वृद्धि होगी खर्चो में वृद्धि होगी इसलिए सोच समझ कर खर्च करें
मकर–Capricon ( भो ज जी खी खू खे खो ग गी)
इस राशि में मंगल अष्टम भाव में सिंह राशि से गोचर कर रहा है जो आपको संकेत देता है की आपको चोट ,दुर्घटना आदि लगने का भय है  पारिवारिक सुख आपको मिलेगा परन्तु पुत्र के साथ आपका झगड़ा हो सकता है खर्चों की अधिकता रहेगी परन्तु १५ नवम्बर के पश्चात शनि का गोचर तुला राशि में दशम स्थान में होने से जिन्हें नोकरी की तलाश है जरूर पूरी होगी , व्यवसाय में लाभ व् उन्नति के संयोग बन रहे है उनका पूरा लाभ उठाये
कुम्भ – Aquarius ( गु गे गो स सी सु से सो द)
आपकी राशि का स्वामी शनि १५ नवम्बर से तुला राशि में प्रवेश कर रहा है जो आपका भाग्य भाव है इसलिए यदि कोई नया काम  शुरू करने की सोच रहें है तो शनि से सम्बन्धित कार्यों की अनदेखी ना करें , जमीन , जायदाद के कार्य से आपको लाभ होने की पूरी सम्भावना है आप के विदेश जाने के योग निर्मित हो रहें हैं श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करें
मीन – Pisces ( दि दु थ झ दे दो चा चि )
आप की राशि का स्वामी गुरु दूसरे भाव में है जो आपके लिए आय का साधन बनाता है परन्तु आप अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे और मुकद्दमों से बचें, वाहन चलते समय सावधानी  बरतें , चोट लगने की सम्भवना  है १५ नवम्बर  के बाद शनि की दृष्टि लग्न से हटने के पश्चात आपके बिगड़े कार्य बनेगें और आय में भी बडोतरी होगी , कार्तिक माहात्म्य का पाठ शुभ  रहेगा


यह मासिक फलादेश चन्द्रमा पर आधारित है इसलिए जो व्यक्ति पाश्चत्य जगत के भविष्य वक्ताओं की तरह इसे द्खेंगे उन्हें निराशा हाथ लगेगी क्योकी पश्चिमी जगत में राशि सूर्य पर आधारित होती है परन्तु हमारे यहाँ राशि चन्द्र पर आधारित होती है इसलिए जब आप राशि देखे तो या तो आपको अपनी सही राशि पता होनी चाहिए या फिर आपकी राशि वो होगी जिस राशि के आगे आप के नाम का अक्षर होगा

शीघ्र विवाह / Early Marriage

आज कल जिस माता पिता के बच्चे जवान हो जाते हैं उनकी रातों की नीद और दिन का चैन ऐसे छीन जाते हैं जैसे उन्होंने पुत्र या पुत्री को जन्म देकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर लिया हो , पुत्र के बारे में तो फिर भी कहीं ना कहीं शांति दिखाई पडती है परन्तु पुत्री के मामले में तो उनका सब कुछ दाव पर लग जाता है लड़का है के मिलता ही नहीं सभी रिश्तेदारों , मित्रों से कह डाला परन्तु पुत्री के योग्य वर नहीं मिलता है  यहाँ आपको एक छोटा सा तंत्र करना है और आपकी समस्या यूँ चुटकी में हल हो जायेगी
विधि :- किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार को विष्णु -लक्ष्मी मंदिर में जाए ,परन्तु ध्यान एक बात का रखना है यह बात किसी को भी नही बतानी है जब तक आपके यहाँ रिश्ता नहीं हो जाता , दूसरा मंदिर जाते हुए किसी से भी कोई वार्तालाप ना करें  , भगवान विष्णु -लक्ष्मी की प्रतिमा प्राण -प्रतिष्ठित होनी चाऔर दोनों इकठ्ठे होने चहिये , लड़की मंदिर में जाये और विष्णु जी की कलगी ( जो सेहरे के उपर लगी होती है ) उसे वहाँ लगाये , साथमे बेसन के ५ लड्डू चढाये , विवाह शीघ्र ही सम्पन्न हो जायेगा