Wednesday, November 9, 2011

वास्तुशास्त्र और दस दिशाएँ / Directions and Vastushastra

वास्तुशास्त्र को समझने के लिए दिशाओं का ज्ञान होना अत्यधिक आवश्यक है बिना दिशाओं के ज्ञान के आप कभी भी भूखंड पर भवन बना कर उससे लाभ नहीं उठा सकते इसलिए इसके लिए सबसे पहले आपके पास दिशा सूचक यन्त्र का होना अति आवश्यक है कुछ व्यक्ति सूर्य की दिशा से भी इस बात का ज्ञान कर लेतें  हैं कि पूर्व दिशा किधर है और उस आधार पर अन्य दिशाओं का ज्ञान भी कर लेते हैं परन्तु मेरी समझ में यह  अवैज्ञानिक है  और इस को आधार मान कर दिशाओं को निकलने में त्रुटि रह सकती है इसलिए भूखंड कि दिशाओं को जानने के दिक् सूचक यन्त्र का होना अत्यधिक आवश्यक है प्रथमतया दिक्सूचक यंत्र से ० शून्य अंश उतर का पता लगाये और फिर बाकि दिशाओं का पता लगाना बेहद आसान हो जाता है इन दिशाओं में जब दो दिशाएँ मिलती हैं तो उस कोण पर दो दिशाओं कि उर्जा मिलती है और ८ दिशाएँ और आकाश और पृथ्वी १० दिशाओं का निर्माण होता है भूखंड के मध्य स्थान ब्रह्रास्थान कहलाता है जिस प्रकार शरीर में नाभि का स्थान होता है उसी प्रकार भूखंड में यह स्थान ब्रह्रास्थान को प्राप्त है आइये आपको ८ दिशाओं का एक –एक कर के परिचय करते हैं
उत्तर  ------उत्तर दिशा के अधिष्ठित देवता कुबेर हैं जो धन और समृद्धि के द्योतक हैं। ज्योतिष के अनुसार बुद्ध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है। इस दिशा में स्थान खाली रखना या कच्ची भूमि छोड़ना धन और समृद्धि कारक है।
पूर्व---------पूर्व दिशा के देवता इंद्र हैं। आत्मा के कारक और रासृष्टि प्रकाश सूर्य पूर्व दिशा से उदय होते हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है। इस दिशा में कोई रूकावट नहीं होनी चाहिए। पूर्व दिशा में खुला स्थान परिवार के मुखिया की लम्बी उम्र का प्रतीक है।
पश्चिम --------वरूण पश्चिम दिशा के देवता है और ज्योतिष के अनुसार शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि , भाग्य और ख्याति का प्रतीक है।
दक्षिण--------यम दक्षिण दिशा के अधिष्ठित देव हैं। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख , सम्पन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ईशान कोण----------पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान कोण की संज्ञा दी गई है। यह दो दिशाओं का सर्वोतम मिलन स्थान है। यह स्थान भगवान शिव और जल का स्थान भी माना गया है। ईशान को सदैव स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए। इस स्थान पर जलीय स्रोतों जैसे कुंआ , बोरिंग वगैरह की व्यवस्था सर्वोतम परिणाम देती है। पूजा स्थान के लिए ईशान कोण को विशेष महत्व दिया जाता है। इस स्थान पर कूड़ा करकट रखना , स्टोर , टॉयलट वगैरह बनाना वर्जित है।
आग्नेय कोण-------दक्षिण और पूर्व के मध्य का कोणीय स्थान आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है। नाम से ही साफ हो जाता है कि यह स्थान अग्नि देवता का प्रमुख स्थान है इसलिए रसोई या अग्नि संबंधी (इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं। आग्नेय का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
नैऋत्य कोण--------दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा पर निरूति या पूतना का आधिपत्य है। ज्योतिष के अनुसार राहू और केतु इस दिशा के स्वामी हैं। इस क्षेत्र का मुख्य तत्व पृथ्वी है। पृथ्वी तत्व की प्रमुखता के कारण इस स्थान को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। इस दिशा में गड्ढे , बोरिंग , कुंए इत्यादि नहीं होने चाह
वायव्य कोण-----उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य के कोणीय स्थान को वायव्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा का मुख्य तत्व वायु है। इस स्थान का प्रभाव पड़ोसियों , मित्रों और संबंधियों से अच्छे या बुरे संबंधों का कारण बनता है। वास्तु के सही उपयोग से इसे सदोपयोगी बनाया जा सकता है।

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