Monday, December 12, 2011

क्या है शनि की साढ़ेसाती या बृहतकल्याणी/ ढैया या लघुकल्याणी ? / Shani Ki Sadhesati and Dhaiya


क्या  है शनि की साढ़ेसाती या बृहतकल्याणी/ ढैया या लघुकल्याणी ?
हमारे सौरमंडल में सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते हैं अत: जब शनि ग्रह भ्रमण करता हुआ आपकी जन्म कुंडली में बारहवें भाव, लग्न और दूसरे भाव से गोचर करेगा या भ्रमण करेगा तो शनि की इस स्थिति को ज्योतिष में साढ़ेसाती कहा जाता है इन तीन राशियों में शनि करीब – करीब अढ़ाई वर्ष रहता है और तीन राशियों में साढे सात साल यही साढे सात साल साढ़ेसाती में नाम से जाने जाते हैं शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचारधारायें मिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पितविचारों का ताना बाना बुना रहता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती आज शुरू हो गयी तो आज से भी कष्ट और परेशानियों कीशुरूआत होने वाली है।  जो लोग ऐसा सोचते हैं वेअकारण ही भयभीत होते हैंवास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग अलग होता है । कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती शुरू होनेके कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़े साती समाप्त होने से पूर्व ही कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और कुछ लोगों को देर से शनि का प्रभाव देखने को मिलता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद तक इसके प्रभाव से दो चार होना पड़ता है अत: आपको इस विषय में घबराने कीआवश्यकता नहीं है। साढ़े साती के संदर्भ में व्यक्ति के जन्म चन्द्र से द्वादशस्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान का महत्व अधिक होने का कारण यह है कि द्वादश स्थान चन्द्र राशि  से काफी निकट होता है। ज्योतिष परम्परा में द्वादश स्थान से काल पुरूष के पैरों का विश्लेषण किया जाता है तो दूसरी ओरबुद्धि पर भी इसका प्रभाव होता है। शनि के प्रभाव से बुद्धि प्रभावित होतीहै और हम अपनी सोच व बुद्धि पर नियंत्रण नहीं रख पाते हें जिसके कारण ग़लतकदम उठा लेते हैं और हमें कष्ट व परेशानी से गुजरना होता है। हमें यादरखना चाहिए कि साढ़े साती के दौरान मन और बुद्धि के सभी दरवाजे़ वखिड़कियां खोल देनी चाहिए और शांत चित्त होकर कोई भी काम और निर्णय लेनाचाहिए।
 लक्षण और उपाय -जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें, शनि आपसे कुपित हैं और उनकी साढ़े साती चल रही है अथवा नहीं पहले इस तत्व की जांच करलें फिर शनि की साढ़े साती के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि की साढ़े साती के समय कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती हैं जिनसे संकेत मिलता है कि साढ़े साती चल रही है। शनि की साढ़े साती के समय आमतौर पर इस प्रकार की घटनाएं होती है जैसे घर कोई भाग अचानक गिर जाता है। घ्रर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं।
आपके जीवन में जब उपरोक्त घटनाएं दिखने लगे तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप साढ़े साती से पीड़ित हैं। इस स्थिति के आने पर आपको शनि देव के कोप से बचने हेतु आवश्यक उपाय करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य साढ़े साती के प्रभाव से बचने हेतु कई उपाय बताते हैं आप अपनी सुविधा एवं क्षमता के आधार पर इन उपायों से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आप साढ़े साती के दुष्प्रभाव से बचने क लिए जिन उपायों को आज़मा सकते हैं वे निम्न हैं:
शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को अर्घ्य देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं। शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर आप व्रत रख सकते हैं। नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन जल में प्रवाहित कर सकते हैं। शनि के कोप से बचने हेतु नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।
अत: साढ़े साती से आपको बिल्कुल भयभीत होने की जरूरत नहीं है, आप कुशल चिकित्सक की तरह मर्ज़ को पहचान कर उसका सही ईलाज़ करें।
साढ़ेसाती शुभ भी
शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों केचेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठगज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तोशनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुतसे लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभसम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है।कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं (। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति परउनकी राशिकुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता हैअत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है।आइयेहम देखे कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी कोमिश्रित फल देने वाला कैसे होता है। ज्योतिषशास्त्री बताते हैं यह ज्योतिषका गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि औरचन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमाकी स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकिकमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम मेंनहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है।जन्म कुण्डलीमें चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलनभी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृषमिथुनकन्यातुलामकर अथवा कुम्भहै तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोगमिलता है (। उपरोक्त लग्न वालों केअलावा जो भी लग्न हैं उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव कासामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविकप्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने केसाथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।शनिअगर लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो आपके लिएकिसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है (। कुण्डली में अगर स्थिति इसके विपरीत है तो आपको साढ़े साती केदौरान काफी परेशानी और एक के बाद एक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। अगरचन्द्र राशि आर लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते होंअर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो आपको साढ़ेसाती के दौरान मिलाजुला प्रभाव मिलता है अर्थात आपको खट्टा मीठा अनुभव होता है।निष्कर्ष के तौर पर देखें तो साढ़े साती भयकारक नहीं है शनि चालीसा (में एक स्थान पर जिक्र आया है "गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुखसम्पत्ति उपजावैं।।गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राजसमाजा ।। श्लोक के अर्थ पर ध्यान दे तो एक ओर जब शनि देव हाथी पर चढ़ करव्यक्ति के जीवन प्रवेश करते हैं तो उसे धन लक्ष्मी की प्राप्ति होती तोदूसरी ओर जब गधे पर आते हैं तो अपमान और कष्ट उठाना होता है। इस श्लोक सेआशय यह निकलता है कि शनि हर स्थिति में हानिकारक नहीं होते अत: शनि से भयखाने की जरूरत नहीं है। अगर आपकी कुण्डली में शनि की साढ़े साती चढ़ रहीहै तो बिल्कुल नहीं घबराएं और स्थिति का सही मूल्यांकन  करें।

Tuesday, December 6, 2011

मासिक राशिफल / Monthly Horoscope/ दिसम्बर / December - 2011

मेष –Aries (चु चे चो ला ली लू ले लो अ )
मेष राशि का स्वामी मंगल इस मास पंचम भाव में अपनी मित्र राशि सिंह में विद्ध्य्मान है जो जातक विद्द्या ग्रहण कर रहें हैं उन्हें इस मास में भरपूर उर्जा का प्रवाह मिलेगा और विद्द्या की दृष्टि से यह मास उनके लिए शुभ है परन्तु मंगल की दृष्टि द्वादश भाव पर होने के कारण चोट लगने के सम्भावना है शनि अपनी उच्च राशि तुला में सप्तम भाव में बैठा है और शनि पर गुरु की पूर्ण दृष्टि होने के कारण मित्रों से सहयोग की प्राप्ति, परन्तु धन लाभ थोडा रहेगा , लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ और हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें
वृष –Taurus ( इ उ ए ओ व् वि वृ वे वो )
आपकी राशि का स्वामी शुक्र अष्टम भाव में धनु राशि में बैठा है इसलिए अग्नि से बच कर रहें, लग्नेश की दृष्टि धन भाव पर होने के कारण धन का आगमन बना रहेगा और घर में मांगलिक कार्यों में खर्च होगा, जमीन या प्लाट या मकान बनने के योग बन रहें हैं , शत्रु स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे, जो जातक विवाहित हैं अपनी पत्नी का का ख्याल रखें, अस्वस्थ हो सकती हैं , व्यापार में इस मास थोड़ी परेशानी हो सकती है , खर्चों पर कंट्रोल करें,
मिथुन – Gemini ( क कि कु घ ड छ के को ह )
मिथुन राशि का स्वामी बुध षष्ट भाव में वक्री हो कर वृश्चिक राशि में है और राहू और सूर्य के साथ युति कर रहा है इसलिए खान –पान का विशेष ध्यान रखें, आपको एसिडिटी की अधिकता हो सकती है पत्नी का विशेष ध्यान रखें , विद्यार्थी अपनी पढाई की और विशेष  ध्यान दें क्योंकि उनका मन इस मास पढाई की और नहीं लगेगा, मिथुन राशि के जातकों को भाइयों के और से इस मास विशेष सहयोग प्राप्त होगा, आय के साधन बने रहेंगे परन्तु साथ साथ खर्चों में भी वृद्धि होगी इसलिए खर्चों पर विशेष ध्यान दें , श्री सुंदर कांड का पाठ करना विशेष रूप से शुभ रहेगा या फिर आप हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं
कर्क – Cancer ( हि हू हे हो डा डी ड दे डो )
कर्क जातकों के लिए इस मास उन्नति और प्रगति के नए अवसर प्राप्त होंगे, भूमि सम्बन्धी कार्यों में विशेष रूप से सफलता के योग हैं जो जातक नोकरी की तलाश कर रहें इस मास उनकी नौकरी लगने की पूरी सम्भावना है विद्यार्थी थोडा सा अपनी पढाई की और ध्यान दे क्योंकि आपका मन विशेष रूप इस मास चंचल रहेगा और भ्रमित रहेगा जो आपको विद्या ग्रहण करने में व्यवधान उत्पन्न करेगा, शनि की ढईया आपकी राशि चल रही है परन्तु गुरु की पूर्ण दृष्टि होने के कारण और अपनी उच्च राशि में होने के कारण इस मास आपको थोड़ी सी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी हो सकती है आपको श्री सुंदर कांड का पाठ या शनि के मन्त्र के जप करने चाहियें
सिंह – Leo ( म मि मु में मो टा टी टू टे )
इस राशि के जातकों के मास में काफी संघर्ष करने के पश्चात कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, आप अपने पिता से वाद – विवाद से बचें, इस मास आपको क्रोध ज्यादा आएगा जो आपके लिए परेशानी का कारण बन सकता है इस राशि के जातकों को अपनी पत्नी का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उनके अस्वस्थ होने प्रबल सम्भावना है विद्यार्थी के लिए इस मास विशेष रूप से शुभ रहेगा आपको श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष लाभ देगा
कन्या – Virgo ( टो पा पी पू ष ण ठ पे पो )
इस मास में कन्या राशि के जातकों के लिए पछले दिनों किये गए प्रयास सफल होंगे, घर में धार्मिक कार्यों पर खर्च होगा जो जातक व्यापार में हैं वे इस मास निराश होंगे क्योंकि व्यापारिक स्थिति उनकी अपेक्षाओं  के अनुरूप नहीं होगी नौकरी पेशा वालों को को अफसरों से व्यर्थ के विवाद से बचना चाहिए, कन्या राशि के जातको को वाहन चलते समय इस मास विशेष सावधान रहना चाहिए दुर्घटना हो सकती है
तुला –  Libra ( रा री रु रे रो ता ति तु ते )
इस मास तुला राशि के जातकों के राशि का स्वामी शुक्र धनु राशि में तृतीय भाव में बैठा है और नवम भाव को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है लग्न में शनि उच्च का हो कर तृतीय,सप्तम और दशम बहव पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है गुरु सप्तम भाव में बैठ कर एकादश भाव लग्न और तृतीय भाव पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है जिसके कारण इस मास के शुरू में आय कम और खर्च ज्यादा होगा व्यर्थ की भाग दौड़ ज्यादा होगी सूर्य का दूसरे होना  में होना धन का नुकसान करेगा परन्तु मास के अंत में आपको सफलता मिलने लगेंगी आपको श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करना शुभ रहेगा
वृश्चिक – Scorpio ( तो न नी नु ने नो या यी यु)
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए इस मास बिगड़े हुए कार्य बनेगें जो व्यक्ति किसी भी बीमारी से ग्रस्त हैं उनके ठीक होने के आसार बन रहें हैं उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा, इस रहसी के जातकों में नई उर्जा का संचार होगा जो जातक व्यापर करने की सोच रहें है उनके लिए यह उपयुक्त अवसर है विद्यार्थियों के लिए इस मास उलझनें आएँगी इसलिए पढाई के प्रति असावधानी न बरतें पिछले दिनों में किये गए कार्य में इस मास सफलता मिलने के पूर्ण रूप अवसर हैं
धनु– Sagittarius ( ये यो भा भी भू ध फ ढ भे )
इस मास गुरु की दृष्टि नवम भाव , एकादश भाव और लग्न पर होने के कारण धर्म तथा शुभ कार्यों पर व्यय होगा , इस मास आपके मान –सम्मान में वृद्धि होगी शुभ कार्यों में ध्यान लगेगा आर्थिक रूप से प्रगति होगी सीख साधनों में वृद्धि होगी विदेश जाने का योग निर्मित हो रहें अचानक विदेश जा सकते हैं उछाधिकारियों से मेल – जोल बढ़ेगा जो जातक विद्द्या ग्रहण कर रहें उनके लिए इस मास में अच्छे परिणाम प्राप्त होंगें
मकर–Capricon ( भो ज जी खी खू खे खो ग गी)
मकर राशि के जातकों के लिए यह मास उनके लिए शुभ समाचार लेकर आयेगा इस राशि के जातक यदि भूमि सम्बन्धी कार्य या क्रय और विक्रय में हैं तो इस मास उन्हें खूब मुनाफा होगा शनि अपनी उच्च राशि में अपनी ही भाव में बैठा है जो इस मास हर प्रकार से मकर राशि के जातकों लिए शुभ है इस राशि के जातकों के लिए व्यापार में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे
कुम्भ – Aquarius ( गु गे गो स सी सु से सो द)
इस मास कुभं राशि के जातकों के लिए लग्न का स्वामी मान – सम्मान ले कर आयेगा , जो जातक व्यापार के क्षेत्र में हैं उन्हें कुछ कठिनाइयों के बाद सफलता मिलेगी , आप विदेश जाने की योजना भी बना सकते हैं नए मित्रों से मुलाकात होगी जिनसे आप को भविष्य में लाभ होगा , इस राशि के जातक थोडा सा अपनी सेहत का ख्याल रखें उन्हें एसिडिटी या पेट में खराबी हो सकती है हनुमान चालीसा का पाठ आपके लिए शुभ रहेगा
मीन – Pisces ( दि दु थ झ दे दो चा चि )
इस राशि के जातकों के लिए इस मास अकस्मात धन प्राप्ति योग बन रहें हैं आपको मानसिक तनाव हो सकता है इसलिए वाद –विवाद से बचें श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करना आपके लिए शुभ रहेगा

Friday, November 18, 2011

वास्तुशास्त्र और सावधानियां /Vastushastra and Precautions taken while building Your Home or Commercial Complex

वास्तुशास्त्र और सावधानियां /Vastushastra and Precautions taken while building Your Home or Commercial Complex
वास्तु शास्त्र एक वैदिक विद्या है जिसे कुछ अशस्त्रियों ने अपने ही  ढंग से इसकी व्याख्या कर के इसे अमर्यादित और अशास्त्रीय बना दिया है और जन - सामान्य के मन में इस विषय को,  जानने  वालों के प्रति मन में खिन्नता  भर दी  है वास्तुशास्त्र का विशद वर्णन अथर्ववेद के उपवेद स्थापत्य वेद में विस्तारपूर्वक मिलता है परन्तु कुछ अशस्त्रियों और कुछ पुस्तक छापने वालों ने इस महान विद्द्या का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, यत्र-तत्र से चार किताबें पकड़ी और एक किताब का निर्माण किया और पुस्तक बाज़ार में बिकने को उपलब्ध हो जाती है ना कोई शोध ना कोई अन्वेषण और फिर वही दोषारोपण का अनवरत कार्य शुरू, पुस्तक  का लेखक लिखने के पैसे लेकर फरार और पुस्तक बेचने वाला भी मोटी कमाई कर नो दो ग्यारह, परन्तु पुस्तक क्रेता जब उस पुस्तक के आधार पर अपने गृह का निर्माण कार्य सम्पन्न करता है तो अच्छे के स्थान पर बुरा होना शुरू होता है तो वास्तुशास्त्रियों को  अनेको विशेषणों से सुशोभित करता है कि ये वास्तुशास्त्री चोर है और ना  जाने कितने नामकरण कर दिए जाते है मनुष्य कि प्रकृति ही ऐसी है वह सफलता के लिए केवल अपने आपको ही उतरदायी मानता है परन्तु असफलता के लिए सदैव दूसरों को उतरदायी ठहराएगा इन सब  से बचने के लिए पाठकों से नम्र निवेदन है कि यदि आप दो चार दवाइयों के नाम जान ले तो आप डॉक्टर नहीं बन जायेंगे, मैंने स्वयं ऐसे अनेक मित्रों से बातचीत में सुना है फलां का मकान तो वास्तु के अनुसार नहीं बना है परन्तु मित्रों, क्या दो किताबो के पढ़ने से आप वास्तुशास्त्री बन सकते है क्या आपको गृह के उर्जा क्षेत्र का पता चल सकता है? मेरा अपना अनुभव कहता है – नहीं , क्या आप जिस व्यक्ति का घर बनाने में सहायता कर रहें  है? उसकी जन्म कुंडली देखी है ? क्या उसकी कुंडली के ग्रहों का घर से  मिलान किया है आदि –आदि
इससे पहले कि आप अपने घर को अभिशप्त कर लें किसी विद्द्वान वास्तुआचार्य का परामर्श लें और अपने घर और जीवन दोनों में खुशियों की बहार लाए वास्तु हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत वह महान विद्द्या है जो आपके जीवन को अँधेरे से बाहर निकाल कर प्रकाश और आपके दुर्भाग्य को आपके जीवन से निकाल कर सौभाग्य के प्रकाश में ला सकती है किसी भी भूखंड पर निर्माण आपके पुरे जीवन को ही प्रभावित नहीं करता वरन आपके पुरे जीवन को नियत्रण करता है भूखंड का चयन किस दिन और किस नक्षत्र और किस महूर्त में होना है यह भूखंड के क्रेता को पता होना चाहिए, फिर उस भूखंड की क्रेता की आवश्यकतानुसार भूखंड की प्रकृति का परीक्षण कर लिया जाना चाहिए, उसके बाद उसका शानदार महूर्त, निर्माण का उचित क्रम, प्राकृतिक उर्जा का आनुपातिक लय से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह भूखंड कितने वर्षों में कितनी बड़ी सफलता देगा जिस प्रकार जन्म कुंडली देख कर व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली देख कर उसके कुल सामर्थ्य का अनुमान लगाया जा सकता है उसी प्रकार से यदि भूखंड पर वास्तु के अनुसार निर्माण कार्य कराया जाए तो भूखंड से अकल्पनातित रूप से लाभ लिया जा सकता है
जो भवन वाणिज्यिक प्रयोग के लिए बनाया गया होता है और भवन निर्माता   केवल भवन निर्माण कर के उसे बेचने की इच्छा रखता है ऐसे भवन निर्माता वास्तु नियमों का जम कर उल्लघंन करते है किसी भी भूखंड पर भवन निर्माण एक साल तक चलते रहते है यस उससे भी अधिक अवधि में भी भवन निर्माण पूरा नहीं हो पाता और बहुमंजिला भवन की निर्माण में तीन-चार साल लग जाते हैं अधिकांश वास्तुदोष छ महीने से एक साल की अवधि में पतन करा देते हैं जबकि वास्तु नियमों की पालना इतने समय में ही भवन में और भवन निर्माता के जीवन को खुशियों से भर देता है, यदि एक वाणिज्यिक भवन में शुरू से ही भूखंड की ऊर्जा प्रणालियों को नष्ट-भ्रष्ट होने ना दिया जाए और निर्माण कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है नही तो आप के भवन का कार्य बिच में ही रुक जायेगा और आपको कारन भी समझ नहीं आएगा, यदि आप किसी भूखंड में ईशान कोण से दक्षिण कोण की और बढ़ेंगे तो आपके निर्माण कार्य में बिच में ही रुक जायंगे या फिर इतनी अधिक समस्याएं आएंगी कि आप का निर्माण कार्य सदा के लिए बंद हो जायेगा जबकि इसके विपरीत आप दक्षिण कोण से निर्माण शुरू करें और धीरे –धीरे उतर और ईशान कोण की और बढे और अंत तक ईशान कोण को निर्माण कार्य से बच्यें रखें तो आपका प्रजेक्ट न कवक शीघ्रता से पूरा होगा बल्कि आपको वित् की उपलब्धता में भी कोई कमी नहीं आएगी,
वाणिज्यिक भवन का अर्थ ही वित् से है यदि आपको लक्ष्मी प्रप्ति शीघ्रता से चहिये तो उतर दिशा का निर्माण वास्तु सम्मत ढंग से कराएँ ऐसे भवन में उतर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक निर्माण हो तो भवन स्वामी का विकास तीव्र गति से होगा और वह समाज में ऊँची स्थिति को प्राप्त होगा, दक्षिणमुखी भूखंडों में उया पश्च्मिमुखी भूखंडों में सबसे बड़ी समस्या यह रहती है की आजकल भूखंड सरकार द्वारा आबंटित किये जाते हैं तो समस्या इससे भी अधिक गम्भीर हो जाती है भवन निर्माण करने वाले को आगे और पीछे की और सरकारी नियमों के अनुसार जगह छोडनी पडती है तो ऐसे में केवल भवन निर्माता को त्याग परिचय देकर भूखंड के ईशान कोण और उतर कोण की रक्षा करनी चहिये और यदि दक्षिण के बराबर ही उतर के बराबर जगह छोड़ दी जाए तो भूखंड अच्छा परिणाम देता है वाणिज्यिक या ओद्योगिक भवनों में बड़े भूखंड होने के कारण इस तरह की सावधानी आसान है परन्तु घरों में अत्यधिक दुष्कर है यदि वास्तुशास्त्र आधारित भवन बनाने के परिकल्पना की जाये तो किसी भी भवन में प्रथम आधार भूखंड की दिशा होती है , उसके बाद शुभ महूर्त में नीवं का विधिविधान से शुभ प्रारम्भ, ये दो महत्वपूर्ण भाग अकसर लोग जानबूझकर या फिर भवन बनाने की जल्दी में ध्यान नहीं देते और बाद में अक्सर उस भवन को लेकर उसका निदान ढूढते फिरते हैं इसलिए इन दो महत्वपूर्ण अवसरों को अन्यथा ना ले,
वास्तुशास्त्र के अनुसार भूखंड के एक दिशा में ८ वास्तुद्वार होते हैं और ४ दिशाओं में ३२, इन में से हर दिशा में केवल एक या दो द्वारा ही शुभ होते हैं परन्तु यह समस्या 10 या १५ फुट की दुकानों में या इस से कम या ज्यादा  हो तो  परेशानी का कारण अधिक बनती है ओद्योगिक भवनों में या आजकल मॉल जो आधुनिक युग के देन है वहाँ मर्म स्थानों पर निर्माण करा कर अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारते है और अच्छे-भले निर्माण का लालच के वशीभूत हो कर कुछ ऐसे निर्माण करा लेते हैं जिसके बुरे परिणाम बाद में भुगतने पड़ते हैं वाणिज्यक भवनों में मुख्य द्धारों को पहले निश्चित कर लेना चाहिए ताकि उस स्थान के देवता आपको शुभ परिणाम पहले से ही देने लगते हैं वायव्य कोण कोण का द्धार आपको मृत्यु या कारागार भी भेज सकता है नैऋत्य कोण का दरवाजा आपको हानि देता है आग्नेय कोण का द्धार संतान सम्बन्धी समस्याएं देता है और ईशान कोण का द्धार अग्नि दुर्घटनाओं को देता है जितने भी व्यवसायिक निर्माण कराए जाते हैं यदि भारी निर्माण पूर्व दिशा की अपेक्षा पश्चिम में हो और उतर की अपेक्षा दक्षिण में हो तो तो धन का आगमन सहज और राज्य से अधिक सहायता और उन्नत वंश परम्परा का भविष्य सुनिश्चित हो जाता है प्राय: सुनने और पढ़ने में आता है की दक्षिण पश्चिम में भारी निर्माण अधिक लाभप्रद होता है परन्तु इसके विपरीत दक्षिण दिशा ही भूखंड की सर्वाधिक शक्तिशाली जगह है जन्म कुंडली में दशम भाव दक्षिण दिशा का स्वामी है और जो मनुष्य के कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है  अत: व्यावसयिक स्थानों में दक्षिण दिशा में बैठने का स्थान अधिक सुखद परिणाम देने वाला है वाराहमिहिर ने बड़े भवनों और राजाओं के प्रसादों के लिए और व्यावसायिक निर्माणों के लिए जो नियम दिए है यदि वास्तविकता के धरातल पर उन्हें उतारा जाए तो निश्चित ही व्यापारिक विस्तार को सैकड़ों गुना विस्तार दिया जा सकता है परन्तु यह भी निश्चित है की यह निर्माण दक्षिण दिशा में ही होंगे

श्री सूक्त / Shri Suktm

 //श्री सूक्त//
हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममावह ।१।
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।२।
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।३।
कांसोस्मि तां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ।४।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।५।
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तुमायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।६।
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।७।
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुदमे गृहात् ।८।
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ।९।
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।१०।
कर्दमेन प्रजाभूतामयि सम्भवकर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।११।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीतवसमे गृहे ।
निचदेवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।१२।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।१३।
आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह .. १४..
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् .
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् .. १५..
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् .
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् .. १६..
पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे .
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् .. १७..
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने .
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे .. १८..
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि .
विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व .. १९..
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् .
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे .. २०..
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः .
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते .. २१..
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा .
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः .. २३..
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः . .
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् .. २४..
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे .
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् .. २५..
विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम् .
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् .. २६..
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि .तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् .. २७..
श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते .
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः .. २८
// ऋग्वेदो उक्तं  श्री सूक्तं सम्पूर्ण//

श्री गणपति सहस्रनामस्तोत्र / Shri Ganpati Shsrnaamstotrm

श्री गणेश सहस्रनामस्तोत्र
ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ गणक्रीडाय नमः॥
ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐ एकदंष्ट्राय नमः॥
ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐ मदोदराय नमः॥
ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐ विकटाय नमः॥
ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ दुर्मुखाय नमः॥
ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐ विघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननाय नमः॥
ॐ भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दाय नमः॥
ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐ मदोत्कटाय नमः॥ ॐ हेरम्बाय नमः॥
ॐ शम्बराय नमः॥ ॐ शम्भवे नमः ॥ॐ लम्बकर्णाय नमः ॥ॐ महाबलाय नमः ॥
ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ अलम्पटाय नमः ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐ मेघनादाय नमः ॥
ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः ॥ॐ विरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥
ॐ शूराय नमः ॥ॐ वरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥ॐ बुद्धिप्रियाय नमः ॥
ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः ॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्राय नमः ॥
ॐ अघनाशनाय नमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐ ईशानपुत्राय नमः ॥ॐ मूषकवाहनाय नः ॥
ॐ सिद्धिप्रदाय नमः ॥ॐ सिद्धिपतये नमः ॥ॐ सिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः ॥
ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐ सिंहवाहनाय नमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥
ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐ राजपुत्राय नमः ॥ॐ शकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः ॥
ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः ॥ॐ दुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥
ॐ अजयाय नमः ॥ॐ भूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशाय नमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः ॥
ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐ विश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥
ॐ निधये नमः ॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐ कवीनामृषभाय नमः ॥
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐ ज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये नमः ॥
ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः ॥
ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐ पूषदन्तभृते नमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥
ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐ कुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः ॥
ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ मनोमयाय नमः ॥ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥
ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः ॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥
ॐ मेखलिन नमः ॥ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥
ॐ गुणिने नमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐ सुरूपाय नमः ॥ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥
ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐ पीताम्बराय नमः ॥ॐ खड्गधराय नमः ॥
ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥
ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐ योगाधिपाय नमः ॥ॐ तारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः ॥
ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐ विजयस्थिराय नमः ॥
ॐ गणपतये नमः ॥ॐ ध्वजिने नमः ॥ॐ देवदेवाय नमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥
ॐ वायुकीलकाय नमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐ नादाय नमः ॥
ॐ नादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः ॥ॐ मृत्युञ्जयाय नमः ॥
ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐ इच्छाशक्तिधराय नमः ॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥
ॐ दैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः ॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥
ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐ शम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥
ॐ गौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐ गौरीतेजोभुवे नमः ॥
ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐ यज्ञकायाय नमः ॥ॐ महानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥
ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ सर्वात्मने नमः ॥ॐ सर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥
ॐ ककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ चिद्व्योमफालाय नमः ॥
ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐ जगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥ॐ अग्न्यर्कसोमदृशे नमः ॥
ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐ धर्मिष्ठाय नमः ॥ॐ सामबृंहिताय नमः ॥
ॐ ग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐ वाणीजिह्वाय नमः ॥ॐ वासवनासिकाय नमः ॥
ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐ सोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥
ॐ नदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐ तारकानखाय नमः ॥
ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः॥ॐ ब्रह्मविद्यामदोत्कटाय नमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः ॥
ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐ अर्णवोदराय नमः ॥
ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षः किन्नरमानुषाय नमः ॥

Wednesday, November 9, 2011

वास्तुशास्त्र और दस दिशाएँ / Directions and Vastushastra

वास्तुशास्त्र को समझने के लिए दिशाओं का ज्ञान होना अत्यधिक आवश्यक है बिना दिशाओं के ज्ञान के आप कभी भी भूखंड पर भवन बना कर उससे लाभ नहीं उठा सकते इसलिए इसके लिए सबसे पहले आपके पास दिशा सूचक यन्त्र का होना अति आवश्यक है कुछ व्यक्ति सूर्य की दिशा से भी इस बात का ज्ञान कर लेतें  हैं कि पूर्व दिशा किधर है और उस आधार पर अन्य दिशाओं का ज्ञान भी कर लेते हैं परन्तु मेरी समझ में यह  अवैज्ञानिक है  और इस को आधार मान कर दिशाओं को निकलने में त्रुटि रह सकती है इसलिए भूखंड कि दिशाओं को जानने के दिक् सूचक यन्त्र का होना अत्यधिक आवश्यक है प्रथमतया दिक्सूचक यंत्र से ० शून्य अंश उतर का पता लगाये और फिर बाकि दिशाओं का पता लगाना बेहद आसान हो जाता है इन दिशाओं में जब दो दिशाएँ मिलती हैं तो उस कोण पर दो दिशाओं कि उर्जा मिलती है और ८ दिशाएँ और आकाश और पृथ्वी १० दिशाओं का निर्माण होता है भूखंड के मध्य स्थान ब्रह्रास्थान कहलाता है जिस प्रकार शरीर में नाभि का स्थान होता है उसी प्रकार भूखंड में यह स्थान ब्रह्रास्थान को प्राप्त है आइये आपको ८ दिशाओं का एक –एक कर के परिचय करते हैं
उत्तर  ------उत्तर दिशा के अधिष्ठित देवता कुबेर हैं जो धन और समृद्धि के द्योतक हैं। ज्योतिष के अनुसार बुद्ध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी हैं। उत्तर दिशा को मातृ स्थान भी कहा गया है। इस दिशा में स्थान खाली रखना या कच्ची भूमि छोड़ना धन और समृद्धि कारक है।
पूर्व---------पूर्व दिशा के देवता इंद्र हैं। आत्मा के कारक और रासृष्टि प्रकाश सूर्य पूर्व दिशा से उदय होते हैं। पूर्व दिशा पितृस्थान का द्योतक है। इस दिशा में कोई रूकावट नहीं होनी चाहिए। पूर्व दिशा में खुला स्थान परिवार के मुखिया की लम्बी उम्र का प्रतीक है।
पश्चिम --------वरूण पश्चिम दिशा के देवता है और ज्योतिष के अनुसार शनिदेव पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। यह दिशा प्रसिद्धि , भाग्य और ख्याति का प्रतीक है।
दक्षिण--------यम दक्षिण दिशा के अधिष्ठित देव हैं। दक्षिण दिशा में वास्तु के नियमानुसार निर्माण करने से सुख , सम्पन्नता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
ईशान कोण----------पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान कोण की संज्ञा दी गई है। यह दो दिशाओं का सर्वोतम मिलन स्थान है। यह स्थान भगवान शिव और जल का स्थान भी माना गया है। ईशान को सदैव स्वच्छ और शुद्ध रखना चाहिए। इस स्थान पर जलीय स्रोतों जैसे कुंआ , बोरिंग वगैरह की व्यवस्था सर्वोतम परिणाम देती है। पूजा स्थान के लिए ईशान कोण को विशेष महत्व दिया जाता है। इस स्थान पर कूड़ा करकट रखना , स्टोर , टॉयलट वगैरह बनाना वर्जित है।
आग्नेय कोण-------दक्षिण और पूर्व के मध्य का कोणीय स्थान आग्नेय कोण के नाम से जाना जाता है। नाम से ही साफ हो जाता है कि यह स्थान अग्नि देवता का प्रमुख स्थान है इसलिए रसोई या अग्नि संबंधी (इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों आदि) के रखने के लिए विशेष स्थान है। शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी हैं। आग्नेय का वास्तुसम्मत होना निवासियों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
नैऋत्य कोण--------दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा पर निरूति या पूतना का आधिपत्य है। ज्योतिष के अनुसार राहू और केतु इस दिशा के स्वामी हैं। इस क्षेत्र का मुख्य तत्व पृथ्वी है। पृथ्वी तत्व की प्रमुखता के कारण इस स्थान को ऊंचा और भारी रखना चाहिए। इस दिशा में गड्ढे , बोरिंग , कुंए इत्यादि नहीं होने चाह
वायव्य कोण-----उत्तर और पश्चिम दिशा के मध्य के कोणीय स्थान को वायव्य दिशा का नाम दिया गया है। इस दिशा का मुख्य तत्व वायु है। इस स्थान का प्रभाव पड़ोसियों , मित्रों और संबंधियों से अच्छे या बुरे संबंधों का कारण बनता है। वास्तु के सही उपयोग से इसे सदोपयोगी बनाया जा सकता है।

गर्भपात को रोकने का तंत्र / To stop Abortion with Tantra

विवाह के बाद हर दम्पति की इच्छा होती है की अब उसका पद पिता और माता का होना चहिये परन्तु कई बार दुर्भाग्यवश या ग्रह गोचर के कारण स्त्री को गर्भपात हो जाता है जो बहुत ही दुःखदायी होता है यदि कोई भी पति पत्नी जिस के इस प्रकार का अनर्थ कई बार हुआ है वह इस तंत्र को करे अगली बार स्त्री के साथ इस प्रकार  की दुर्घटना नहीं होगी
विधि :- जब स्त्री गर्भधारण कर ले तो पति और पत्नी दोनों कृष्ण – राधा के मंदिर में गुरु – पुष्य नक्षत्र में  चांदी की बांसुरी राधा – कृष्ण को अर्पित करे तो गर्भपात नहीं होगा ये तंत्र अनुभूत है

Sunday, November 6, 2011

राशिफल - नवम्बर २०११ / Horscope- November 2011

मासिक राशिफल – नवम्बर -2011
मेष –Aries (चु चे चो ला ली लू ले लो अ )
इस मास के शुरू में इस राशि का स्वामी मंगल पंचम भाव में मित्र राशि का हो कर बैठेगा, परन्तु काफी मेहनत के पश्चात ही आपको आय के साधन प्राप्त होंगे मंगल की दृष्टि अष्टम भाव और एकादश भाव एवं द्वादश भाव पर होने के कारण आपको अचानक चोट या दुर्घटना का भय है इस राशि के विद्ध्यार्थियों को इस माह काफी सावधान रहने की आवशकता है उन्हें हुनमान चालीसा या बजरंग बाण या लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए नहीं तो विद्द्या में मनोनुकूल परिणाम नहीं आयंगे इस राशि के जातको को अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के प्रति सावधनी बरतनी चाहिए, १५ नवम्बर के पश्चात शनि अपनी स्थिति बदलेंगे और उनकी  नीच  विषमयी दृष्टि भाग्य भाव,लग्न और चतुर्थ भाव पर पडेगी जो इस राशि के जातको के लिए ठीक नहीं है कुछ अशुभ भ घटित हो सकता है  आय के स्रोत्र कम होंगे , स्वास्थ्य के प्रति थोडा सा सावधान रहें और सुख में कमी आएगी  मेष रही के जातको को शनि चालीसा , लंका कांड , शनि का दान देना अशुभ प्रभावों को कम कर देगा
वृष – Taurus ( इ उ ए ओ व् वि वृ वे वो )
वृष राशि पर ६ जून से  केतु का संचार है  जिस के कारण शरीर में थकावट और बीमारी की सम्भावना रहेगी और मानसिक परशानियां इस वर्ष के अंत तक आप के साथ रहेंगी १५ नवम्बर के पश्चात शनि अपनी उच्च राशि तुला में षष्ट  भाव से  संचार करेगा इसलिए शनि की दृष्टि अष्टम भाव , द्वादश भाव और तृतीय भाव होगी जो कोई भी ऐसा उतम मार्ग प्रशस्त नहीं करेगी केवल मात्र वह व्यक्ति जो न्यायालय में जिनके मामले लम्बित हैं उन्हें कुछ शुभ समाचार मिल सकते हैं इस पुरे मास संघर्षपूर्ण स्थितियां, अत्यधिक भाग दौड़ बनी रहेगी घर की आंतरिक समस्याए अभी बनी रहेंगीश्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करना आपके लिए अत्यधिक शुभ रहेगा किसी अंधे भिखारी को उनी कंबल देना आपके स्वास्थ्य में सुधर लाएगा
मिथुन – Gemini ( क कि कु घ ड छ के को ह )
मिथुन जातको को इस मास में अपने स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहना पडेगा क्योंकि उनके लग्न का स्वामी बुध स्वयं षष्ट भाव में शत्रु राशि गोचर कर रहा है बुध ,शुक्र और राहू तीनों की दृष्टि द्वादश भाव पर होने से खर्चो में अत्यधिक वृद्धि होगी तथा आकस्मिक रूप से आप अस्वस्थ होने की प्रबल सम्भावना है मानसिक अशांति परन्तु पराक्रम बना रहेगा लड़ने की क्षमता बनी रहेगी आय से अधिक खर्च रहेंगे परन्तु गुरु बृहस्पति के कारण आमदनी और  मदद मिलती रहेगी
कर्क – Cancer ( हि हू हे हो डा डी ड दे डो )
इस मास की १५ नवम्बर से शनि अपनी स्व राशि तुला से संचार करेगा परन्तु कर्क राशि के जातकों के लिए यह चतुर्थ भाव में संचरण करेगा और शनि की ढैया शुरू होने से इस मास घरेलू सुख में कमी, परेशानी, आर्थिक रूप से परेशानी और बिमारियों से सम्बन्धित परेशानियां बनेगी व्यवसाय की स्थिति मध्यम बनी रहेगी आय के साधन भी बनेगे परन्तु खर्चो की अधिकता रहेगी
सिंह – Leo ( म मि मु में मो टा टी टू टे )
इस मास सिंह राशि के जातको को क्रोध बहुत आएगा इस के कारण व्यर्थ और  निरर्थक विवादों में उलझेंगे, आपकी पत्नी से भी आपकी झगड़े पूरी सम्भावना है लड़ाई –झगड़े से बचे अन्यथा हानि होगी आय योग्य साधन निर्मित होंगे परिवार में सुख रहेगा यदि आप झगड़े से बचे , धन लाभ की पूरी सम्भावना है १५ नवम्बर के पश्चात थोड़ी सी सुख
कन्या – Virgo ( टो पा पी पू ष ण ठ पे पो )
इस राशि के जातको के उपर शनि की साढ़ेसाती के कारण मानसिक तनाव एवं घरेलू उलझने बढेंगी १५ नवम्बर के पश्चात शनि दूसरे भाव और अपनी स्वराशि तुला से गोचर करेगा जो कन्या राशि वालों को कुछ राहत प्रदान करेगा परन्तु पारिवारिक सुख में कमी, अध्यात्म की और उन्मुख होंगे, परन्तु आर्थिक क्षेत्र में आपको अत्यधिक लग्न से काम करना पडेगा श्री कार्तिक माहात्म्य का पाठ करना शुभ रहेगा
तुला –  Libra ( रा री रु रे रो ता ति तु ते )
तुला राशि पर इस समय शनि की साढ़ेसाती चल रही है जो १५ नवम्बर २०११ को आद्रा नक्षत्र एवं मिथुन राशि के चन्द्र के समय १०:११मिनट पर शनि देव कन्याराशी को छोड़कर तुला राशि में प्रवेश करेंगे इसलिए तुला राशि वालों के लिए साढ़ेसाती में घरेलू झगड़े तो बने रहेंगे परन्तु व्यापार,धन सम्पति का लाभ होगा उनका प्रभाव क्षेत्र  बढ़ेगा और लोगों में सम्मान बढ़ेगा मित्रों से सावधान रहने की आवश्यकता है इस मास के अंत में थोडा खर्च बढ़ेगा तथा मन में तनाव बना रहेगा कार्तिक माहात्म्य का पाठ करना शुभ रहेगा
वृश्चिक – Scorpio ( तो न नी नु ने नो या यी यु)
इस राशि का स्वामी मंगल अपनी मित्र राशि सिंह में गोचर कर रहा है वृश्चिक राशि के जातको को जो शारीरिक कष्ट अभी तक थे वो धीरे धीरे दूर हो जायंगे १५ नवम्बर को शनि द्वादश भाव में गोचर करेगा जिससे शारीरिक कष्ट खत्म होंगे विद्द्या के क्षेत्र में असफलता मिलने की सम्भावना अधिक है परन्तु शिरोवेदना अभी भी रहगी इस राशि में राहू का संचार होने से मानसिक तनाव और स्वस्थ सम्बन्धी परेशानियां होंगी भौम गायत्री का पाठ करना शुभ रहेगा
धनु– Sagittarius ( ये यो भा भी भू ध फ ढ भे )
इस मास पिछले मास के बिगड़े हुए कार्य बनेगे , मंगल सिंह राशि में से गोचर करेगा जो इस राशि के जातको के लिए आर्थिक रूप से अच्छा है १५ नवम्बर से शनि अपनी स्वराशि तुला एकादश भाव में होगा जो जातक को आर्थिक क्षेत्र में तो सहायता करेगा परन्तु लग्न पर दृष्टि होने के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी चिंताएं भी बढाएगा पारिवारिक सुखों में वृद्धि होगी खर्चो में वृद्धि होगी इसलिए सोच समझ कर खर्च करें
मकर–Capricon ( भो ज जी खी खू खे खो ग गी)
इस राशि में मंगल अष्टम भाव में सिंह राशि से गोचर कर रहा है जो आपको संकेत देता है की आपको चोट ,दुर्घटना आदि लगने का भय है  पारिवारिक सुख आपको मिलेगा परन्तु पुत्र के साथ आपका झगड़ा हो सकता है खर्चों की अधिकता रहेगी परन्तु १५ नवम्बर के पश्चात शनि का गोचर तुला राशि में दशम स्थान में होने से जिन्हें नोकरी की तलाश है जरूर पूरी होगी , व्यवसाय में लाभ व् उन्नति के संयोग बन रहे है उनका पूरा लाभ उठाये
कुम्भ – Aquarius ( गु गे गो स सी सु से सो द)
आपकी राशि का स्वामी शनि १५ नवम्बर से तुला राशि में प्रवेश कर रहा है जो आपका भाग्य भाव है इसलिए यदि कोई नया काम  शुरू करने की सोच रहें है तो शनि से सम्बन्धित कार्यों की अनदेखी ना करें , जमीन , जायदाद के कार्य से आपको लाभ होने की पूरी सम्भावना है आप के विदेश जाने के योग निर्मित हो रहें हैं श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करें
मीन – Pisces ( दि दु थ झ दे दो चा चि )
आप की राशि का स्वामी गुरु दूसरे भाव में है जो आपके लिए आय का साधन बनाता है परन्तु आप अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे और मुकद्दमों से बचें, वाहन चलते समय सावधानी  बरतें , चोट लगने की सम्भवना  है १५ नवम्बर  के बाद शनि की दृष्टि लग्न से हटने के पश्चात आपके बिगड़े कार्य बनेगें और आय में भी बडोतरी होगी , कार्तिक माहात्म्य का पाठ शुभ  रहेगा


यह मासिक फलादेश चन्द्रमा पर आधारित है इसलिए जो व्यक्ति पाश्चत्य जगत के भविष्य वक्ताओं की तरह इसे द्खेंगे उन्हें निराशा हाथ लगेगी क्योकी पश्चिमी जगत में राशि सूर्य पर आधारित होती है परन्तु हमारे यहाँ राशि चन्द्र पर आधारित होती है इसलिए जब आप राशि देखे तो या तो आपको अपनी सही राशि पता होनी चाहिए या फिर आपकी राशि वो होगी जिस राशि के आगे आप के नाम का अक्षर होगा

शीघ्र विवाह / Early Marriage

आज कल जिस माता पिता के बच्चे जवान हो जाते हैं उनकी रातों की नीद और दिन का चैन ऐसे छीन जाते हैं जैसे उन्होंने पुत्र या पुत्री को जन्म देकर कोई बहुत बड़ा अपराध कर लिया हो , पुत्र के बारे में तो फिर भी कहीं ना कहीं शांति दिखाई पडती है परन्तु पुत्री के मामले में तो उनका सब कुछ दाव पर लग जाता है लड़का है के मिलता ही नहीं सभी रिश्तेदारों , मित्रों से कह डाला परन्तु पुत्री के योग्य वर नहीं मिलता है  यहाँ आपको एक छोटा सा तंत्र करना है और आपकी समस्या यूँ चुटकी में हल हो जायेगी
विधि :- किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार को विष्णु -लक्ष्मी मंदिर में जाए ,परन्तु ध्यान एक बात का रखना है यह बात किसी को भी नही बतानी है जब तक आपके यहाँ रिश्ता नहीं हो जाता , दूसरा मंदिर जाते हुए किसी से भी कोई वार्तालाप ना करें  , भगवान विष्णु -लक्ष्मी की प्रतिमा प्राण -प्रतिष्ठित होनी चाऔर दोनों इकठ्ठे होने चहिये , लड़की मंदिर में जाये और विष्णु जी की कलगी ( जो सेहरे के उपर लगी होती है ) उसे वहाँ लगाये , साथमे बेसन के ५ लड्डू चढाये , विवाह शीघ्र ही सम्पन्न हो जायेगा

Sunday, October 30, 2011

सन्तान, यश, लक्ष्मी की कृपा, वैभव, चन्द्र दोष से निवृति आदि का एक उपाय – प्रदोष व्रत


सन्तान, यश, लक्ष्मी की कृपा, वैभव, चन्द्र दोष से निवृति आदि का एक उपाय – प्रदोष व्रत
हमारे ऋषियों –मुनियों ने नाना प्रकार के प्रयोग कर के हमे इस प्रकार का उच्चतम जीवन देने का प्रयास किया कि जो आज हम केवल  सोच सकते हैं हमारे इन महान पूर्वजो ने एक ऐसा वैज्ञानिक तन्त्र विकसित किया जिसे आज का वैज्ञानिक समाज केवल मात्र कल्पना और स्वप्न ले सकते हैं हमारा भारतीय समाज एक समय “जगत गुरु “ के पद पर प्रतिष्ठित था परन्तु केवल मात्र कापना करने से कोई समाज उत्कृष्ट नहीं बन जाता, हमारे समाज में जब तक यन्त्र , मंत्र , तंत्र इन तीनों प्रकार के विषयों के विशेष उत्कृष्ट व्यक्ति भारतीयों का नेतृत्व कर रहे थे भारत सर्वोच्च आसन पर आसीन था परन्तु काल चक्र अपना काम करता है और हम भारतीय उच्चतम स्थिति से निम्न्रतम स्थिति पर आ खड़े हुए इन सबका कारण यवनों के आक्रमण , हमारी अर्कमण्यता और कर्म न करने कि रूचि, और यन्त्र , मंत्र और तंत्र इस तीनों के विज्ञान के प्रति अरुचि ने हमे अर्कमण्यता और कर्महीनता कि और धकेला है परन्तु हमने इतने आक्रमणों और कष्ट सहने के बाद भी जो बचाया है वह सब भी आश्चर्यजनक है परन्तु आज के वैज्ञानिक युग में भी हम बिना किसी के पास जाए भुत कुछ प्राप्त कर सकते है करना तो केवल आपको है एक चटना आपको मेरे साथ जो घटी थी उसके बारे में बताता हूँ मेरे पास एक सज्जन अपनी पत्नी के साथ आये, मैं उनकी जन्म कुंडली देखी और उनकी संतान के बारे में बताया परन्तु मेरे आश्चर्य कि कोई सीमा नहीं रही कि जब कच्छ दिन बाद मुझे एक संदेश प्राप्त हुआ कि वह जो माँ बनना चाहती है व्रत नहीं रख सकती, आश्चर्य घोर आश्चर्य , इतना और बता दूँ वो दम्पति दिल्ली , चंडीगढ़ और अनेको डॉक्टर से सलाह के बाद ही मेरे पास आए थे , सन्तान और वो भी बिना दुःख के मिले ये तो लगभग असम्भव सा है परन्तु हमारे यंहा यही सम्भव है हमारे वैदिक वांग्मय में अनेको उदाहरण इस प्रकार है उन्ही में से एक है प्रदोष व्रत - प्रदोष व्रत हर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के बाहरवें दिन या द्वादशी को आता है यह व्रत सोमवार या मंगल वार या शनिवार तो इन्हें सोम प्रदोष व्रत, मंगल प्रदोष व्रत या शनि प्रदोष व्रत कहते हैं
शास्त्रों में  सोमवार मंगलवार और शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत बहुत अधिक प्रभावकारी कहे गए हैं। इसी प्रकार  द्वाद्वशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इन्हीं तिथियों को व्रत रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि अनेक जप, तप और नियम संयम के बावजूद अगर गृहस्थ जीवन में संकट, क्लेश आर्थिक विषमताएं पारिवारिक विद्वेष संतानहीनता या संतान की उपलब्धि के बाद भी नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजी-रोटी सहित सांसारिक जीवन विभीषिकाएं खत्म नहीं हो रही हैं, तो उस श्रद्धालु के लिए प्रतिमाह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत रखना हितकर होता है।

प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए भी मनोकामनापूरक व्रत है, जिन्हें चन्द्रमा ग्रह से काफी पीड़ित होना पड़ रहा है। साथ ही चन्द्रमा ग्रह के अनेक उपायों में साल भर में प्रदोष व्रतों को उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, अरबी, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करना हितकर होता है। चाहे गुरूवार हो या कोई अन्य वार, अगर प्रदोष व्रत हो, तो इसके लिए श्रद्धा पूर्वक व्रत रखकर उपरोक्त दान करेंगे तो आपके लिए शनि का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाएगा और रोग-व्याधि, दरिद्रता, घर की अशांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का निवारण हो जाएगा।

शनि या मंगल प्रदोष व्रत के दिन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, भैरव मंदिर अथवा शिव मंदिर में पूजा करना भी लाभप्रद होता है। प्रदोष व्रत का दूसरा महत्व पुत्रकामना हेतु अथवा संतान के शुभ हेतु रखने में बृहस्पतिवार का दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस दिन मीठे पकवान और फल आदि गाय के बछड़े को देने से संतानहीन दंपत्तियों के लिए भी मनोकामना पूरक होता है। लेकिन, इसके लिए लगातार 16 प्रदोष व्रत करने जरूरी होते हैं। किसी भी प्रकार की संतान बाधा में शनि प्रदोष व्रत भी सबसे उत्तम मनोकामना पूरक उपाय है।

व्रत के दिन पति-पत्नी द्वारा प्रातः स्नान के उपरांत शिव, पार्वती और गणेशजी की संयुक्त आराधना के बाद शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग मे जल चढ़ाना, पीपल पर भी जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहना होगा। सायंकाल के समय लोहे की कढ़ाही में उड़द की दाल और मोटे चावल तथा तिल आदि मिलाकर खिचड़ी खानी होगी। खिचड़ी का एक चैथाई भाग काले कुत्ते या गाय को भी देना हितकर होगा।

प्रदोष व्रत रखने से सांसारिक दुखों की भी निवृत्ति होती है। यह आवश्यक नहीं है कि हम महज चंद्रमा की दशा या संतानहीनता के दुख को टालने के लिए इस व्रत को रखें। बल्कि यह व्रत सुख संपदा युक्त जीवन शैली के अलावा हमें यश, कीर्ति, ख्याति और वैभव देने में समर्थ होता है। विशेष रूप से श्रावण भाद्रपद, कार्तिक और माघ मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत आज के दैहिक और भौतिक कष्टों को निवारण करने में परम सहायक होते हैं।