Sunday, November 18, 2012

दशरथकृत शनि स्तोत्र


दशरथकृत शनि स्तोत्र
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशनि-स्तोत्र-मन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, सौरिर्देवता, शं बीजम्, निः शक्तिः, कृष्णवर्णेति कीलकम्, धर्मार्थ-काम-मोक्षात्मक-चतुर्विध-पुरुषार्थ-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
कर-न्यासः-
शनैश्चराय अंगुष्ठाभ्यां नमः। मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः। अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः। कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां नमः। शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। छायात्मजाय करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि-न्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः। मन्दगतये शिरसे स्वाहा। अधोक्षजाय शिखायै वषट्। कृष्णांगाय कवचाय हुम्। शुष्कोदराय नेत्र-त्रयाय वौषट्। छायात्मजाय अस्त्राय फट्।
दिग्बन्धनः-
“ॐ भूर्भुवः स्वः”
ध्यानः-
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं गृध्रस्थितं त्रासकरं धनुर्धरम्।
चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं वन्दे सदाभीष्टकरं वरेण्यम्।।
रघुवंशेषु विख्यातो राजा दशरथः पुरा।
चक्रवर्ती स विज्ञेयः सप्तदीपाधिपोऽभवत्।।१
कृत्तिकान्ते शनिंज्ञात्वा दैवज्ञैर्ज्ञापितो हि सः।
रोहिणीं भेदयित्वातु शनिर्यास्यति साम्प्रतं।।२
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श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र


श्रीऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र


श्री ऋण-हरण-कर्तृ-गणपति-स्तोत्र-मन्त्र

ध्यान
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।

।।मूल-पाठ।।
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फल-सिद्धये।
सदैव पार्वती-पुत्रः ऋण-नाशं करोतु मे।।१
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शनि स्तोत्र (पिप्पलाद मुनि द्वारा रचित )


शनि स्तोत्र (पिप्पलाद मुनि द्वारा रचित )
शनि साढेसाती में प्राप्त होने वाले अशुभ फलों से बचने के लिये अपने धैर्य व सहनशक्ति में वृ्धि करने के लिये शनि के उपाय करने चाहिए. विपरीत समय में व्यक्ति की संघर्ष करने की क्षमता बढ जाती है. तथा ऎसे समय में व्यक्ति अपनी पूर्ण दूरदर्शिता से निर्णय लेता है. जिसके कारण निर्णयों में त्रुटियां होने की संभावनाएं कम हो जाती है.शनि साढेसाती के कष्टों में कमी करने के लिये शनि से संम्बन्धित अनेक उपाय किये जा सकते है. जिनमें शनि स्तोत्र (Shani Stotra Path) पाठ व शनि स्तोत्रम (Shani Stotratam) को विशेष महत्व दिया जाता है. शनि के शुभ फल पाने के लिये इस पाठ का जाप नियमित रुप से प्रतिदिन (रविवार को छोडकर) करना लाभकारी रहता है.शनि स्तोत्र  का पाठ करते समय व्यक्ति में शनि के प्रति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना अनिवार्य है. बिना श्रद्धा के लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं नहीं बनती है.
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दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं


दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं


|| दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं ||

विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय कणामृताय शशिशेखरधारणाय |
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || १||
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय |
गंगाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || २||
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय |
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय || ३||
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जीवन के लिए तंत्रिक उपाय


शास्त्रों में चिकित्सा के आठ अंग माने गए हैं, जिनमें एक भूत-विद्या भी है । ‘टोटका’ इस भूत-विद्या का ही एक सूक्ष्म अंग माना जाता है । कई विद्वान इसे पदार्थ-विज्ञान से भी जोड़ते हैं । जिस प्रकार प्राणियों के शरीर में एक अदृश्य-सी विशेष शक्ति विद्यमान रहती है, जिसे हम ‘तेजस्’ कहते हैं; उसी प्रकार उद्भिज प्राणियों और सभी जड़-चेतन पदार्थों में भी यह तेजस्-तत्व विद्यमान रहता है । ‘टोटका’ से सम्बन्धित क्रियाओं के पीछे यह तेजस् ही क्रियाशील होता है । अत: टोटके के गुण-दोष भी पदार्थों के द्रव्य-गुण की भाँति प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, बल्कि उनका प्रभाव अलक्षित और अप्रत्यक्ष होता है ।
हमारा देश कृषि-प्रधान देश है । देश के अधिकांश लोग गाँवों में निवास करते है । ग्रामीणजन पुरानी बातों में विशेष आस्था रखते हैं । इसका एक कारण यह भी है कि ग्रामीणजन प्राकृतिक पदार्थों व वनस्पतियों के गुण-दोष व तेजस्-तत्व से पारम्परिक रूप से परिचित होते हैं ।
यद्यपि टोटका-विज्ञान अथवा भूत-विद्या हमारे देश की पारम्परिक विद्या है, किन्तु इसका प्रचलन चीन, मिस्र आदि देशों में भी प्राचीनकाल से चला आ रहा है । आधुनिक ‘पेंâग-शुुई’ भारत की इस प्राचीन विद्या का ही चीनी-संस्करण है । नेपाल में तथा भारत के असम, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कई आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में इन अदृश्य-शक्ति-सम्पन्न टोटकों का प्रचलन आज भी है ।
प्रस्तुत तन्त्र-वुंâजिका में आमजनों में प्रचलित कुछ पारम्परिक  टोटकों का वर्णन है । आशा है, ये जनोपयोगी सिद्ध होंगे
यह टोटके व साधनायें विशेष रूप से उन पीड़ित व्यक्तियों के लिए हैं, जिन्हें यह आभास है कि उन पर कुछ कर दिया गया है अथवा करवाया गया है — जिससे वह सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे हैं । अत: वह अपनी समस्या के अनुसार इनका प्रयोग करेंगे तो उनका जीवन भी सुखमय हो जायेगा
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तन्त्र का जीवन में प्रयोग


रोजगार-वृद्धि के उपाय
(१) शुक्रवार के दिन भुने हुए चने, गुड़ और खट्टी-मीठी गोलियांँ मिलाकर उन्हें ८ वर्ष तक की आयु के बालकों में बाँट दें । लगातार सात शुक्रवार तक इस टोटका को करने से रोजगार में वृद्धि होने लगती है ।
(२) बुधवार के दिन लड्डू लाएँ और जो व्यक्ति रोजगार चलाता हो लड्डू सात बार उसके ऊपर से उतारकर रख दें । दूसरे दिन परिवार का कोई व्यक्ति सूरज उगने से पहले, जब तारे दिखलाई दे रहे हों, उठे और उन लड्डुओं को किसी भी सपेâद गाय को खिला दे और मुड़कर न देखे । रोजगार में वृद्धि होगी ।
(३) घर, दुकान अथवा कार्यालय में गाय के आगे खड़े होकर वंशी बजाते हुए भगवान कृष्ण का चित्र रखने पर क़र्जा नहीं चढ़ता और धन डूबने की सम्भावना भी कम ही रहती है ।
(४) भगवान शिव पर नित्य प्रात: जल चढ़ाने, प्रत्येक सोमवार को दीपक जलाने और प्रदोष का व्रत करने से ऋण से शीघ्र मुक्ति मिल जाती है ।
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पंचक

  पंचक अर्थात (पांच नक्षत्रों का समूह)  यह एक  ऐसा(ज्योतिष) का   विशेष मुहूर्त दोष है जिसमें बहुत सारे कामों को करने की मनाही की जाती क्या यह वाकई हानिकारक होता है या फिर यह एक भ्रांति है। क्या पंचक के केवल उसके नाकारात्मक प्रभाव ही मिलते है या उसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं? इस लेख के माध्यम से हम जानेगे की पंचक क्या है इनमे कौन -२ से नक्षत्र होते हैं और हमारे जीवन पर इनका क्या प्रभाव रहता है
क्या होता है पंचक?
पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशिचक्र में 360 अंश एवं 27 नक्षत्र होते हैं। इस प्रकार एक नक्षत्र का मान 13 अंश एवं 20 कला या 800 कला का होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा 27 नक्षत्रों में से अंतिम पांच नक्षत्रों अर्थात धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, एवं रेवती में होता है तो उस अवधि को पंचक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। क्योंकि चन्द्रमा 27 दिनों में इन सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। अत: हर महीने में लगभग 27 दिनों के अन्तराल पर पंचक नक्षत्र आते ही रहते हैं।
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Thursday, August 9, 2012

श्री कृष्ण जन्माष्टमी-2012 / Shri Krishna Janmashtami- 2012


कृष्ण जन्माष्टमी / Krishna Janmashtami
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण जन्मभूमि पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हें और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्म स्थान के अलावा द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं , जिनमें भारी भीड़ होती है।
श्रीकृष्ण भक्तों को इस बार आराध्य देव का जन्मोत्सव मनाने के लिए एक नहीं, बल्कि पूरे दो दिन विशेष संयोग मिलेगा।  इस वर्ष 2012 में 98 साल बाद यह खास संयोग बनने जा रहा है। इसके तहत जन्माष्टमी एक नहीं, पूरे दो दिन विशेष संयोग में मनाई जा सकेगी। वैसे तो शैव एवं वैष्णव संप्रदाय की मान्यतानुसार हर वर्ष जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है लेकिन इस वर्ष इस समयावधि में वृषभ के चंद्रमा की स्थिति रहने के साथ में ग्रहों का भी ऐसा योग बन रहा है जो पूर्व के वर्षों में नहीं रहा। इसलिए इस बार इसे महायोग माना जा रहा है। यह सयोंग  अष्टमी तिथि व वृषभ के चंद्रमा की स्थिति के आधार पर 98 वर्षों बाद यह महायोग बनने जा रहा है। इसके तहत 9 व 10 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महापर्व मनाया जा सकेगा। हालांकि जन्माष्टमी का विशेष महत्व 10 अगस्त को ही रहेगा। हिंदू संस्कृति के तहत स्मार्त संप्रदाय के भक्त जहां 9 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व मनाएंगे, वहीं वैष्णवमार्गीय संप्रदाय के लिए इस महोत्सव को मनाने की तिथि 10 अगस्त रहेगी।  9 अगस्त दोपहर 12 बजे के बाद से अष्टमी तिथि का योग शुरू हो जाएगा जो 10 अगस्त की दोपहर 3 बजे तक रहेगा। इधर 10 अगस्त को अष्टमी उदय तिथि में होने से इन दो दिनों में जन्माष्टमी मनाई जा सकेगी। 
 भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र एवं वृषभ के चंद्रमा में हुआ था और इसी दिन ((10 अगस्त)) वृषभ के चंद्रमा की स्थिति रहने से जन्मोत्सव का विशेष महत्व रहेगा। जबकि 9 अगस्त में मेष का चंद्रमा होने के साथ भरणी नक्षत्र रहेगा। सवा महीने का अंतराल भी प्रामाणिक है  भाद्रपद में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व व द्वितीय भाद्रपद में 26 सितंबर को भगवान कृष्ण का जलवा पूजन ((डोल ग्यारस)) होने से भी यह महायोग अधिक प्रामाणिक है क्योंकि हिंदूधर्म में भी बच्चे  के जन्म के सवा महीने बाद ही जलवा पूजन की प्रथा है। इसके पूर्व भाद्रपद  माह एक होने से 20 दिनों में जलवा पूजन के योग बनते हैं ।

Sunday, July 22, 2012

हरियाली तीज या मधुस्र्वा २२ जुलाई २०१२ / Hariyali Teej 22 july 2012


तीज का त्यौहार उतर भारत में बड़े हर्षोउल्लास से मनाया जाता है इस वर्ष यस त्यौहार २२ जुलाई २०१२ को  इस दिन  देश भर के उत्तरी क्षेत्र में तीज त्यौहार की धूम रहेगी , श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं. उत्तर भारत में यह हरियाली तीज के नाम से भी जानी जाती है. तीज का त्योहार मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है. इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है और जगह-जगह झूले पड़ते हैं. इस त्योहार में स्त्रियाँ गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं.
तीज सावन (जुलाई–अगस्त) के महीने में शुक्लपक्ष के तीसरे दिन मनाई जाती है. श्रावण शुक्ल तृतीया (तीज) के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं. इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है.
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नाग पंचमी त्यौहार ,व्रत ,विधि और कथा २३ जुलाई २०१२ / The Festival of Naag Panchmi 23 July 2012


नाग पंचमी
नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है । हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रुप में मनाया जाता है । इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध पिलाया जाता है। नागपंचमी के ही दिन अनेकों गांव व कस्बों में कुस्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। गाय, बैल आदि पशुओं को इस दिन नदी, तालाब में ले जाकर नहलाया जाता है।
हमारी संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है।
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बुधवार व्रत की विधि, कथा और आरती / The Fast of Wednesday Method, Katha and Aarti


बुधवार का व्रत करने की विधि | Wednesday Fast Method
इस व्रत को शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से शुरू करना चाहिए और २१ से लेकर ४५ व्रत करने कस विधान है जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए इसके बाद नित्यक्रिया से निवृ्त होकर, स्नानादि कर शुद्ध हो जाना चाहिए. स्नान करने के बाद संपूर्ण घर को गंगा जल छिडकर शुद्ध करना चाहिए. गंगा जल ने मिलें, तो किसी पवित्र नदी का जल भी छिडका जा सकता है. और व्रत रखने वाले जातक को हरे रंग के वस्त्र धारण करके बीज मन्त्र ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय: नम: १७ या ३ माला जप करना चाहिए  
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Saturday, July 21, 2012

ज्योतिष और आपकी कुण्डली में ग्रहण योग / Astrology and Grhan Yog in Your Horoscope


हमारा जीवन चक्र ग्रहों की गति और चाल पर निर्भर करता है. ज्योतिष शास्त्र इन्हीं ग्रहों के माध्य से जीवन की स्थितियों का आंकलन करता है और भविष्य फल बताता है. ज्योतिष गणना में योग का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. कुछ योग शुभ स्थिति बताते हैं तो कुछ अशुभता का संकेत देता है.
ग्रहण योग भी अशुभ योग की श्रेणी में आता है. (Grahan yoga is an inauspicious yoga) ग्रहण योग को अशुभ योगों में बहुत ही खतरनाक और कष्टदायक माना गया है. ज्योतिषशास्त्रियों की दृष्टि में यह योग काल सर्प योग से भी खतरनाक और अशुभ फलदायी है (Grahan yog is considered even more harmful than the kalsarp yoga). कालसर्प योग में जीवन में उतार चढ़ाव दोनों आते हैं परंतु यह ऐसा योग है जिसमें सब कुछ बुरा ही होता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में हमेशा निराश और हताश रहता है.
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Friday, July 20, 2012

ज्योतिष और प्रशासनिक सेवाओं में आपकी आजीविका / Astrology and Profession/Career in the Administrative Services

कुण्डली में बनने वाले योग ही बताते है कि व्यक्ति की आजीविका का क्षेत्र क्या रहेगा. प्रशासनिक सेवाओं में प्रवेश की लालसा अधिकांश लोगों में रहती है. आईये देखें कि कौन से योग प्रशासनिक अधिकारी के कैरियर में आपको सफलता दिला सकते हैं.
उच्च शिक्षा के योग  (Astrology Yoga for Higher Studies)
आई. ए. एस. जैसे उच्च पद की प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली में शिक्षा का स्तर अच्छा होना चाहिए. शिक्षा के लिये शिक्षा के भाव  दूसरा, चतुर्थ भाव, पंचम भाव व नवम भाव को देखा जाता है. इन भाव/भावेशों के बली होने पर व्यक्ति की शिक्षा उतम मानी जाती है. शिक्षा से जुडे ग्रह है बुध, गुरु व मंगल इसके अतिरिक्त  शिक्षा को विशिष्ट बनाने वाले योग भी व्यक्ति की सफलता का मार्ग खोलते है. शिक्षा के अच्छे होने से व्यक्ति नौकरी की परीक्षा में बैठने के लिये योग्यता आती है
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Tuesday, July 17, 2012

गायत्री महामंत्र और इसकी तात्विक विवेचना / Gayatri Mahamantra and its Analysis

ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । आर्शग्रंथों मे गयत्रि मन्त्र
यह महामन्त्र वेदों में कई-कई बार आया है ।
ऋग्वेद में ६ ।६२ ।१०,
‍सामवेद में २ ।८ ।१२,
यर्जुवेद वा० सं० में ३ ।३५-२२ ।९ -३० । २-३६ ।३,
अथर्व वेद में १९ । ७१ ।१
में गायत्री की महिमा विस्तार पूर्वक गाई गई है ।
ब्राह्मण ग्रन्थों में गायत्री मन्त्र का उल्लेख अनेक स्थानोंपर है । यथा-
ऐतरेय ब्राह्मण ४ ।३२ ।२-५ ।५ ।६-१३ ।८, १९ ।८,
‍कौशीतकी ब्राह्मण २२ ।३-२६ ।१०,
गोपथ ब्राह्मण १ ।१ ।३४,

गायत्री मंत्र के २४ अक्षरों से सम्बन्धित २४ तत्व / The 24 Elements of Gayatri Mahamtra in relation to 24 letters

सृष्टि की पदार्थ-सम्पदा का वर्गीकरण करने की दृष्टि से जिन पंच तत्त्वों की चर्चा की जाती है, उसे भौतिक जगत् की सृजन सामग्री कहा जाता है । उस सामान्य वर्गीकरण का विज्ञानवेत्ताओं ने अधिक गंभीर विश्लेषण किया है, तो उनकी संख्या १०० से भी अधिक हो गई है । यह भौतिक जगत् की तत्त्व चर्चा हुई । आत्मिक क्षेत्र में चेतना ही सर्वस्व है । इस चेतना को जिन-जिन माध्यमों की अपने अस्तित्व का परिचय देने, संवेदनाएँ ग्रहण करने तथा अभीष्ट प्रयोजन सम्पन्न करने में आवश्यकता पड़ती है, उन्हें तत्त्व कहा गया है । ऐसे चेतन तत्त्व २४ हैं । इसी गणना में भौतिक पंचतत्त्वों की भी गणना की जाती है ।सांख्य दर्शन में जिन २४ तत्त्वों का उल्लेख है, वे पदार्थ परक नहीं, वरन् चेतना को प्रभावित करने वाली तथा चेतना से प्रभावित होने वाली सृष्टि धाराएँ हैं । ऐसी धाराओं की गणना २४ की संख्या में की गई हैं । इन्हें प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति की सृष्टि संचालन एवं जीवन प्रवाह में महत्त्वपूर्ण भूमिका सम्पन्न करने वाली दिव्य-धाराएँ-देव सम्पदाएँ, सृष्टि प्रेरणाएँ कहा जा सकता है । प्रवाह परिकर को गायत्री महाशक्ति की सशक्त स्फुरणायें समझा जा सकता है । गायत्री तत्त्वदर्शन की विवेचना इसी रूप में होती रही है । cont. on www.astroswami.in

Sunday, July 15, 2012

गायत्री मंत्र में 24 अक्षरों से सम्बन्धित शरीरस्थ 24 ग्रंथियाँ और उनकी शक्तियाँ / The Power of 24 letters in Gayatri Matara in relation to 24 Glands of Human Body


पिण्ड को ब्रह्माण्ड की छोटी प्रतिकृति माना गया है । वृक्ष की सारी सत्ता छोटी से बीज में भरी रहती है । सौर मण्डल की पूरी प्रक्रिया छोटे से परमाणु में ठीक उसी तरह काम करती देखी जा सकती है । मनुष्य की शारीरिक और मानसिक संरचना का छोटा रूप शुक्राणु में विद्यमान रहता है ।
यह 'महतोमहियान् का अणोरणीयान्' में दर्शन है । छोटी-सी 'माइक्रो' फिल्म पर सुविस्तृत ग्रंथों का चित्र उतर आता है । जीव में ब्रह्म की सारी विभूतियाँ और शक्तियाँ विद्यमान है । ब्रह्म का विस्तार यह ब्रह्माण्ड है । जीव का विस्तार शरीर में है । मानवी-काया यों हाड़-मांस की बनी दीखती है और मलमूत्र की गठरी प्रतीत होती है, पर उसकी मूल सत्ता, जो गंभीर विवेचन करने पर प्रतीत होती है, वह है, जिससे इस छोटे से कलेवर में वह सब विद्यमान मिलता है, जो विराट् विश्व में दृष्टिगोचर होता है ।
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२४ अक्षरों से सम्बन्धित २४ अनुभूतियाँ / The feelings of Gayatri Mantra

देव शक्तियों के जागरण एवं अवतरण की अनुभूति प्रायः दो रूपों में होती है । प्रथम-रंग, दूसरा-गंध । ध्यानावस्था में भीतर एवं बाहर किसी रंग विशेष की झाँकी बार-बार हो अथवा किसी पुष्प विशेष की गंध भीतर से बाहर को उभरती प्रतीत हो, तो समझना चाहिये कि गायत्री के अक्षरों में सन्निहित अमुक शक्ति का उभार विशेष रूप से हो रहा है । इस अनुभूति के लिए २४ पुष्पों का उदाहरण दिया गया है । उनके रंग या गंध की अन्तः अनुभूति के आधार पर देव शक्तियों का अनुमान लगाया जा सकता है । ऐसा भी कहा जाता है कि अमुक शब्द शक्तियों की साधना में इन फूलों का उपयोग विशेष सहायक सिद्ध होता है ।
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Friday, July 13, 2012

गायत्री मन्त्र ( महामंत्र ) और 14 शक्तियाँ / Gayatri Mantara ( Mahamantra ) and its 14 Powers


समस्त विद्याओं की भण्डागार-गायत्री महाशक्ति 
ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 
गायत्री संसार के समस्त ज्ञान-विज्ञान की आदि जननी है । वेदों को समस्त प्रकार की विद्याओं का भण्डार माना जाता है, वे वेद गायत्री की व्याख्या मात्र हैं । गायत्री को ‘वेदमाता’ कहा गया है । चारों वेद गायत्री के पुत्र हैं । ब्रह्माजी ने अपने एक-एक मुख से गायत्री के एक-एक चरण की व्याख्या करके चार वेदों को प्रकट किया । 
ॐ भूर्भवः स्वः से-ऋग्वेद, 
तत्सवितुर्वरेण्यं से-यर्जुवेद, 
भर्गोदेवस्य धीमहि से-सामवेद और 
धियो योनः प्रचोदयात् से अथर्ववेद की रचना हुई । 
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Tuesday, July 10, 2012

भारतीय संस्कृति का आध्यात्मिक आधार / The Spiritualism is the Foundation of Indian Culture

भारतीय संस्कृति मनुष्य मात्र को क्या, संसार के प्राणी मात्र और अखिल ब्रह्माण्ड तक को भगवान् का विराट् रूप मानता है । भगवान् इस विराट में आत्म-रूप होकर प्रतिष्ठत है और विश्व के समस्त जीव-जन्तु प्राणी स्थावर जंगम उसमें स्थिर हैं । वे अंग हैं और ये सब अङ्गक । जीवन के अन्त तक सब में यह भावना समाविष्ट रहे, एक मित्रा इसी के लिए योग्यता, बुद्धि, सार्मथ्य के अनुसार अनेक र्कत्तव्य निश्चित हैं । र्कत्तव्यों में विभिन्नता होते हुए भी प्रेरणा में समता है, एक निष्ठा है, एक उद्देश्य है और यह उद्देश्य ”अध्यात्म” कहलाता है । यह अध्यात्म लादा नहीं गया है, थोपा नहीं गया है, बल्कि प्राकृतिक होने कारण स्वाभाविक है Please Log On to www.astroswami.in For more Information and Astrology, Numerlogy and Hindu Spiritualism

Monday, July 9, 2012

भगवान कृष्ण / The Lord Krishan


सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार माने जाते हैं । श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर युग पुरुष थे। उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभासम्पन्न राजनीतिवेत्ता ही नही, एक महान कर्मयोगी और दार्शनिक प्राप्त हुआ, जिसका गीता- ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। वे लोग जिन्हें हम साधारण रूप में नास्तिक या धर्म निरपेक्ष की श्रेणी में रखते हैं निश्चित रूप से भगवत गीता से प्रभावित हैं। गीता किसने और किस काल में कही या लिखी यह शोध का विषय है किन्तु गीता को कृष्ण से ही जोड़ा जाता है। यह आस्था का प्रश्न है और यूँ भी आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं तलाशे जाते।
ब्रज या शूरसेन जनपद के इतिहास में श्रीकृष्ण का समय बड़े महत्त्व का है। इसी समय में प्रजातंत्र और नृपतंत्र के बीच कठोर संघर्ष हुए, मगध-राज्य की शक्ति का विस्तार हुआ और भारत का वह महान भीषण संग्राम हुआ जिसे महाभारत युद्ध कहते हैं। इन राजनीतिक हलचलों के अतिरिक्त इस काल का सांस्कृतिक महत्त्व भी है।
मथुरा नगरी इस महान विभूति का जन्मस्थान होने के कारण धन्य हो गई। मथुरा ही नहीं, सारा शूरसेन या ब्रज जनपद आनंदकंद कृष्ण की मनोहर लीलाओं की क्रीड़ाभूमि होने के कारण गौरवान्वित हो गया। मथुरा और ब्रज को कालांतर में जो असाधारण महत्त्व प्राप्त हुआ वह इस महापुरुष की जन्मभूमि और क्रीड़ाभूमि होने के कारण ही श्रीकृष्ण भागवत धर्म के महान स्रोत हुए। इस धर्म ने कोटि-कोटि भारतीय जन का अनुरंजन तो किया ही,साथ ही कितने ही विदेशी इसके द्वारा प्रभावित हुए। प्राचीन और अर्वाचीन साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोहर लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटली पर जो छाप लगा दी है, वह अमिट है। Please Log On for more information and articles on astrology to www.astroswami.in

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम/ The Tale of Lord Sri Ram

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामहिन्दू धर्म में राम, विष्णु के 10 अवतारों में से एक हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम, महर्षि वाल्मिकि द्वारा रचित, संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है। उनके उपर तुलसीदास ने भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस रचा था। ख़ास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूज्यनीय माने जाते हैं।रामचन्द्र हिन्दुत्ववादियों के भी आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है) और इनके तीन भाई थे, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के राजा रावण का वध किया।अनेक विद्वानों ने उन्हें 'मर्यादापुरुषोत्तम' की संज्ञा दी है। वाल्मीकि रामायण तथा पुराणादि ग्रंथों के अनुसार वे आज से कई लाख वर्ष पहले त्रेता युग में हुए थे। पाश्चात्य विद्वान उनका समय ईसा से कुछ ही हज़ार वर्ष पूर्व मानते हैं। अपने शील और पराक्रम के कारण भारतीय समाज में उन्हें जैसी लोकपूजा मिली वैसी संसार के अन्य किसी धार्मिक या सामाजिक जननेता को शायद ही मिली हो। भारतीय समाज में उन्होंने जीवन का जो आदर्श रखा, स्नेह और सेवा के जिस पथ का अनुगमन किया, उसका महत्व आज भी समूचे भारत में अक्षुण्ण बना हुआ है। वे भारतीय जीवन दर्शन और भारतीय संस्कृति के सच्चे प्रतीक थे। भारत के कोटि कोटि नर नारी आज भी उनके उच्चादर्शों से अनुप्राणित होकर संकट और असमंजस की स्थितियों में धैर्य एवं विश्वास के साथ आगे बढ़ते हुए कर्त्तव्यपालन का प्रयत्न करते हैं। उनके त्यागमय, सत्यनिष्ठ जीवन से भारत ही नहीं, विदेशों के भी मैक्समूलर, जोन्स, कीथ, ग्रिफिथ, बरान्निकोव आदि विद्वान आकर्षित हुए हैं। उनके चरित्र से मानवता मात्र गौरवान्वित हुई है।हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुडे हुए है। माना जाता है कि राम का जन्म प्राचीन भारत में हुआ था। उनके जन्म के समय का अनुमान सही से नहीं लगाया जा सका है। आज के युग में राम का जन्म, रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। राम चार भाईयो में से सबसे बड़े थे, इनके भाइयो के नाम लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। राम बचपन से ही शान्त स्वभाव के वीर पुरुष थे। उन्‍होने मर्यादाओं को हमेशा सर्वोच्‍च स्‍थान दिया था। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जाना जाता है। उनका राज्य न्‍यायप्रिय और ख़ुशहाल माना जाता था, इसलिए भारत में जब भी सुराज की बात होती है, रामराज या रामराज्य का उद्धरण दिया जाता है। धर्म के मार्ग पर चलने वाले राम ने अपने तीनो भाइयों के साथ गुरु वसिष्ठ से शिक्षा प्राप्‍त की। Please Log on for more information and articles on astrology www.astroswami.in

Wednesday, July 4, 2012

सोमवार व्रत की कथा और विधि / The holy Story and Method (Fast of Monday)

व्रत की विधि -सोलह सोमवार के  उपवास शुक्ल पक्ष  के प्रथम  सोमवार से शुरू किये  जाते है. यह व्रत सोम यानि चंद्र या शिवजी के लिये रखा जाता है। सोलह सोमवार के दिन भक्तिपूर्वक व्रत करें.
अधा सेर गेहूं का आटा के तीन भाग  बनाकर घी, गुड़, दीप, नैवेद्य, पूंगीफ़ल, बेलपत्र, जनेउ का जोड़ा, चंदन, अक्षत, पुष्प, आदि से प्रदोष काल में शंकर जी का पूजन करें.
एक भाग  शिवजी को अर्पण करें.
दो भाग को प्रसाद स्वरूप बांटें, और स्वयं भी ग्रहण करें.
सत्रहवें सोमवार के दिन पाव भर गेहूं के आटे की बाटी बनाकर. घी और गुड़ बनाकर चूरमा बनायें, भोग लगाकर उपस्थित लोगों में प्रसाद बांटें.
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Narsingh Avtaar ki Katha / नरसिंह अवतार की कथा


नरसिंह अवतार
धरा के उद्धार के समय भगवान ने वाराहरूप धारण करके हिरण्याक्ष का वध किया। उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु बड़ा रुष्ट हुआ। उसने अजेय होने का संकल्प किया। सहस्त्रों वर्ष बिना जल के वह सर्वथा स्थिर तप करता रहा।ब्रह्मा जी सन्तुष्ट हुए। दैत्य को वरदानमिला। उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। लोकपालों को मार भगा दिया। स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरूपाय थे। असुर को किसी प्रकार वे पराजित नहीं कर सकते थे।.We moved towww.astroswami.in

मंगलवार व्रत की विधि और विधान / The method of Tuesday Fast

मंगलवार का व्रत सम्मान, बल, पुरुषार्थ और साहस में बढोतरी के लिये किया जाता है. इस व्रत को करने से उपवासक को सुख- समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. यह व्रत उपवासक को राजकीय पद भी देता है. सम्मान और संतान की प्राप्ति के लिये मंगलवार का व्रत किया जाता है. इस व्रत की कथा का श्रवण करने से भी मंगल कामनाएं पूरी होने की संभावनाएं बन रही है. इस व्रत को करने से सभी पापों की मुक्ति होती हैWe moved to.http://www.astroswami.in

Tuesday, July 3, 2012

वराह अवतार की कथा / The sacred Tale of Varaah Avtaar

हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने जब दिति के गर्भ से जुड़वां रूप में जन्म लिया, तो धरती कांप उठी। आकाश में नक्षत्र और दूसरे लोक इधर से उधर दौड़ने लगे, समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें पैदा हो उठीं और प्रलयंकारी हवा चलने लगी। ऐसा ज्ञात हुआ, मानो प्रलय आ गई हो। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों पैदा होते ही बड़े हो गए। दैत्यों के बालक पैदा होते ही बड़े हो जाते है और अपने अत्याचारों से धरती को कपांने लगते हैं। यद्यपि हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों बलवान थे, किंतु फिर भी उन्हें संतोष नहीं था। वे संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे।हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों नेब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए बहुत बड़ा तप किया। उनके तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर कहा, ‘तुम्हारे तप से मैं प्रसन्न हूं। वर मांगो, क्या चाहते हो?’ हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने उत्तर दिया,’प्रभो, हमें ऐसा वर दीजिए, जिससे न तो कोई युद्ध में हमें पराजित कर सके और न कोई मार सके।’ ब्रह्माजी ‘तथास्तु’ कहकर अपने लोक में चले गए। We moved to www.astroswami.in

मत्स्य अवतार की कथा / मत्स्य पुराण से/ The holy tale of Lord Vishnu as Matsya Avtaar

कल्पांत के पूर्व एक बार ब्रह्मा जी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया था। उस दैत्य का नाम हयग्रीव था। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारण किया। इसकी विस्मयकारिणी कथा इस प्रकार है। We moved to www.astroswami.in

वेद क्या हैं


वेद के आधीन क्या क्या है व् वेद का रूप क्या है
वेद का बीज अक्षर व् है जो की स्मृति भी कहलाता है। व् व्यक्त व्यंजन है उ स्वेर काजो की परा जीव्चेतना का केन्द्र तीसरी आंख का ( आज्ञा चक्र) का बीजाक्षर है।
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कुण्डलिनी का रहस्य क्या है ? / What is the mystery behind the power of Kundlini?


कुण्डलिनीके चक्र : कुंडलिनी शक्ति समस्त ब्रह्मांड में परिव्याप्त सार्वभौमिक शक्ति है जो प्रसुप्तावस्था में प्रत्येक जीव में विद्यमान रहती है। इसको प्रतीक रूप से साढ़े तीन कुंडल लगाए सर्प जो मूलाधार चक्र में सो रहा है के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता है। तीन कुंडल प्रकृति के तीन गुणों के परिचायक हैं। ये हैंसत्व (परिशुद्धता), रजस (क्रियाशीतता और वासना) तथा तमस (जड़ता और अंधकार)। अर्द्ध कुंडल इन गुणों के प्रभाव (विकृति) का परिचायक है।We moved to www.astroswami.in

Sunday, July 1, 2012

भारतीय संस्कृति में स्वास्तिक का चिन्ह क्या है ? / What is the Symbol of Swastik in Hindu Culture

आर्यप्रतीक “स्वस्तिक” का प्रयोग क्योँ और वैज्ञानिकता क्या?
(1)”अर्थ और निहित विश्वबन्धुत्व एवं कल्याण”:-
स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला। wemoved to www.astroswami.inभारतीय संस्कृति में स्वास्तिक का चिन्ह क्या है ? / What is the Symbol of Swastik in Hindu Culture

Friday, June 29, 2012

अंक ज्योतिष क्या है ? / What is Numerology ?


अंकज्योतिष क्या है? ( What is Numerology )

अंकज्योतिष अंकों की सहायता से भविष्यवाणी करने का विज्ञान है। अंकज्योतिष के माध्यम से मनुष्य की भविष्य जानने की मूलभूत इच्छा की पूर्ति होती है।

अंकज्योतिष में गणित के नियमों का व्यवहारिक उपयोग करके मनुष्य के अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली जा सकती है।.

वास्तव में अंकज्योतिष में We moved to http://www.astroswami.in/2012/06/25/अंक-ज्योतिष-क्या-है-what-is-numerology

ज्योतिष और आपके शिशु की शिक्षा / Astrology and the Education of your Children

आज के समय में सभी विद्यार्थी  अपनी शिक्षा का स्तर उच्च रखने की कामना रखते हैं.और अभिभावक भी अपने बच्चो की शिक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं. प्राचीन समय में ब्राह्मण का कार्य शिक्षा प्रदान करना था. विद्यार्थीगण आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे. लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में काफी We moved tohttp://www.astroswami.in/2012/06/27/ज्योतिष-और-shikshaज्योतिष-और-आपक

सावन में भगवान शिव /महादेव की उपासना कैसे करनी चाहिए / How to worship Lord Shiv / Mahadev in the month of Sawan

सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ से ही पूजा का आरम्भ हो जाता है. इस माह में भगवान की पूजा करने में निम्न मंत्र जाप करने चाहिएWe moved to. http://www.astroswami.in/2012/06/27/सावन-भगसावन-में-भगवान-शिव

हिंदू धर्म में चातुर्मास के अर्थ और विवेचना / Meaning and Explanation of Chaturmas in Hindu Dharm

धर्म (मज़हब) किसी एक या अधिक परलौकिक शक्ति में विश्वास और इसके साथ-साथ उसके साथ जुड़ी रिति, रिवाज़, परम्परा, पूजा-पद्धति और दर्शन का समूह है । इस संबंध में प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन का अभिमत है कि आज धर्म के जिस रूप को प्रचारित एवं व्याख्यायित किया जा रहा है उससे बचने की जरूरत है। वास्तव में धर्म संप्रदाय नहीं है। जिंदगी में हमें जो धारण करना चाहिए, वही धर्म है। नैतिक मूल्यों का आचरण ही धर्म है। धर्म वह पवित्र अनुष्ठान है जिससे चेतना का शुद्धिकरण होता है। धर्म वह तत्व है जिसके आचरण से व्यक्ति अपने जीवन को चरितार्थ कर पाता है। यह मनुष्य में मानवीय गुणों के विकास की प्रभावना है, सार्वभौम चेतना का सत्संकल्प है।सनातन धर्म इस विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है सनातन धर्म एक जीवन जीने की पद्धति है जो हमारे ऋषि मुनियों ने मानव केउत्थान के लिए विकसित की  we moved to www.astroswami.in