सृष्टि की पदार्थ-सम्पदा का वर्गीकरण करने की दृष्टि से जिन पंच तत्त्वों की चर्चा की जाती है, उसे भौतिक जगत् की सृजन सामग्री कहा जाता है । उस सामान्य वर्गीकरण का विज्ञानवेत्ताओं ने अधिक गंभीर विश्लेषण किया है, तो उनकी संख्या १०० से भी अधिक हो गई है । यह भौतिक जगत् की तत्त्व चर्चा हुई । आत्मिक क्षेत्र में चेतना ही सर्वस्व है । इस चेतना को जिन-जिन माध्यमों की अपने अस्तित्व का परिचय देने, संवेदनाएँ ग्रहण करने तथा अभीष्ट प्रयोजन सम्पन्न करने में आवश्यकता पड़ती है, उन्हें तत्त्व कहा गया है । ऐसे चेतन तत्त्व २४ हैं । इसी गणना में भौतिक पंचतत्त्वों की भी गणना की जाती है ।सांख्य दर्शन में जिन २४ तत्त्वों का उल्लेख है, वे पदार्थ परक नहीं, वरन् चेतना को प्रभावित करने वाली तथा चेतना से प्रभावित होने वाली सृष्टि धाराएँ हैं । ऐसी धाराओं की गणना २४ की संख्या में की गई हैं । इन्हें प्रकारान्तर से गायत्री महाशक्ति की सृष्टि संचालन एवं जीवन प्रवाह में महत्त्वपूर्ण भूमिका सम्पन्न करने वाली दिव्य-धाराएँ-देव सम्पदाएँ, सृष्टि प्रेरणाएँ कहा जा सकता है । प्रवाह परिकर को गायत्री महाशक्ति की सशक्त स्फुरणायें समझा जा सकता है । गायत्री तत्त्वदर्शन की विवेचना इसी रूप में होती रही है । cont. on www.astroswami.in
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