Sunday, October 30, 2011

सन्तान, यश, लक्ष्मी की कृपा, वैभव, चन्द्र दोष से निवृति आदि का एक उपाय – प्रदोष व्रत


सन्तान, यश, लक्ष्मी की कृपा, वैभव, चन्द्र दोष से निवृति आदि का एक उपाय – प्रदोष व्रत
हमारे ऋषियों –मुनियों ने नाना प्रकार के प्रयोग कर के हमे इस प्रकार का उच्चतम जीवन देने का प्रयास किया कि जो आज हम केवल  सोच सकते हैं हमारे इन महान पूर्वजो ने एक ऐसा वैज्ञानिक तन्त्र विकसित किया जिसे आज का वैज्ञानिक समाज केवल मात्र कल्पना और स्वप्न ले सकते हैं हमारा भारतीय समाज एक समय “जगत गुरु “ के पद पर प्रतिष्ठित था परन्तु केवल मात्र कापना करने से कोई समाज उत्कृष्ट नहीं बन जाता, हमारे समाज में जब तक यन्त्र , मंत्र , तंत्र इन तीनों प्रकार के विषयों के विशेष उत्कृष्ट व्यक्ति भारतीयों का नेतृत्व कर रहे थे भारत सर्वोच्च आसन पर आसीन था परन्तु काल चक्र अपना काम करता है और हम भारतीय उच्चतम स्थिति से निम्न्रतम स्थिति पर आ खड़े हुए इन सबका कारण यवनों के आक्रमण , हमारी अर्कमण्यता और कर्म न करने कि रूचि, और यन्त्र , मंत्र और तंत्र इस तीनों के विज्ञान के प्रति अरुचि ने हमे अर्कमण्यता और कर्महीनता कि और धकेला है परन्तु हमने इतने आक्रमणों और कष्ट सहने के बाद भी जो बचाया है वह सब भी आश्चर्यजनक है परन्तु आज के वैज्ञानिक युग में भी हम बिना किसी के पास जाए भुत कुछ प्राप्त कर सकते है करना तो केवल आपको है एक चटना आपको मेरे साथ जो घटी थी उसके बारे में बताता हूँ मेरे पास एक सज्जन अपनी पत्नी के साथ आये, मैं उनकी जन्म कुंडली देखी और उनकी संतान के बारे में बताया परन्तु मेरे आश्चर्य कि कोई सीमा नहीं रही कि जब कच्छ दिन बाद मुझे एक संदेश प्राप्त हुआ कि वह जो माँ बनना चाहती है व्रत नहीं रख सकती, आश्चर्य घोर आश्चर्य , इतना और बता दूँ वो दम्पति दिल्ली , चंडीगढ़ और अनेको डॉक्टर से सलाह के बाद ही मेरे पास आए थे , सन्तान और वो भी बिना दुःख के मिले ये तो लगभग असम्भव सा है परन्तु हमारे यंहा यही सम्भव है हमारे वैदिक वांग्मय में अनेको उदाहरण इस प्रकार है उन्ही में से एक है प्रदोष व्रत - प्रदोष व्रत हर शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के बाहरवें दिन या द्वादशी को आता है यह व्रत सोमवार या मंगल वार या शनिवार तो इन्हें सोम प्रदोष व्रत, मंगल प्रदोष व्रत या शनि प्रदोष व्रत कहते हैं
शास्त्रों में  सोमवार मंगलवार और शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत बहुत अधिक प्रभावकारी कहे गए हैं। इसी प्रकार  द्वाद्वशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इन्हीं तिथियों को व्रत रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि अनेक जप, तप और नियम संयम के बावजूद अगर गृहस्थ जीवन में संकट, क्लेश आर्थिक विषमताएं पारिवारिक विद्वेष संतानहीनता या संतान की उपलब्धि के बाद भी नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजी-रोटी सहित सांसारिक जीवन विभीषिकाएं खत्म नहीं हो रही हैं, तो उस श्रद्धालु के लिए प्रतिमाह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत रखना हितकर होता है।

प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए भी मनोकामनापूरक व्रत है, जिन्हें चन्द्रमा ग्रह से काफी पीड़ित होना पड़ रहा है। साथ ही चन्द्रमा ग्रह के अनेक उपायों में साल भर में प्रदोष व्रतों को उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, अरबी, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करना हितकर होता है। चाहे गुरूवार हो या कोई अन्य वार, अगर प्रदोष व्रत हो, तो इसके लिए श्रद्धा पूर्वक व्रत रखकर उपरोक्त दान करेंगे तो आपके लिए शनि का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाएगा और रोग-व्याधि, दरिद्रता, घर की अशांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का निवारण हो जाएगा।

शनि या मंगल प्रदोष व्रत के दिन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, भैरव मंदिर अथवा शिव मंदिर में पूजा करना भी लाभप्रद होता है। प्रदोष व्रत का दूसरा महत्व पुत्रकामना हेतु अथवा संतान के शुभ हेतु रखने में बृहस्पतिवार का दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस दिन मीठे पकवान और फल आदि गाय के बछड़े को देने से संतानहीन दंपत्तियों के लिए भी मनोकामना पूरक होता है। लेकिन, इसके लिए लगातार 16 प्रदोष व्रत करने जरूरी होते हैं। किसी भी प्रकार की संतान बाधा में शनि प्रदोष व्रत भी सबसे उत्तम मनोकामना पूरक उपाय है।

व्रत के दिन पति-पत्नी द्वारा प्रातः स्नान के उपरांत शिव, पार्वती और गणेशजी की संयुक्त आराधना के बाद शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग मे जल चढ़ाना, पीपल पर भी जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहना होगा। सायंकाल के समय लोहे की कढ़ाही में उड़द की दाल और मोटे चावल तथा तिल आदि मिलाकर खिचड़ी खानी होगी। खिचड़ी का एक चैथाई भाग काले कुत्ते या गाय को भी देना हितकर होगा।

प्रदोष व्रत रखने से सांसारिक दुखों की भी निवृत्ति होती है। यह आवश्यक नहीं है कि हम महज चंद्रमा की दशा या संतानहीनता के दुख को टालने के लिए इस व्रत को रखें। बल्कि यह व्रत सुख संपदा युक्त जीवन शैली के अलावा हमें यश, कीर्ति, ख्याति और वैभव देने में समर्थ होता है। विशेष रूप से श्रावण भाद्रपद, कार्तिक और माघ मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत आज के दैहिक और भौतिक कष्टों को निवारण करने में परम सहायक होते हैं।