मोक्ष और लक्ष्मी दोनों को
एक साथ प्राप्त करने का साधन – गो माता
वैदिक संस्कृति में गौ-माता को मोक्ष
की दाता, सभी तीर्थों में उच्च और मुक्ति देने वाली है (श्री कृष्ण जन्म) में कहा
गया है -
सर्वे देवा गवामडगे तीर्थानि
त्तपदेषु च।
स्वयंलक्ष्मीसितषठःत्येव सदा पितः ॥
गोष्प्दाक्तमृदा यो हि तिलकं कुरुते नरः । तीर्थस्नातो भवेत स्द्ध्यो
जयस्तस्य पदे पदे ॥
गावस्तिषठन्ति यत्रैव् ततीर्थं परिकीर्तितम ।प्राणंस्तय्क्त्वा नरस्तत्र स्द्ध्यो मुक्तो भवेद ध्रुवम ॥
गावस्तिषठन्ति यत्रैव् ततीर्थं परिकीर्तितम ।प्राणंस्तय्क्त्वा नरस्तत्र स्द्ध्यो मुक्तो भवेद ध्रुवम ॥
गाय
माता के शरीर में समस्त देवगणों का निवास स्थान है और गौ माता के चरणों में समस्त
तीर्थ निवास करते है गाय माता के गुह्य भाग में में लक्ष्मी निवास करती है गौ के
पैरों में लगी रज का जो मनुष्य तिलक करते है वह तुरंत ही सभी तीर्थों में स्नान
करने का पुण्य प्राप्त कर लेते है और उसकी पग पग पर विजय होती है जिस स्थान पर गौ
माता निवास करती है वह स्थान स्वयम ही तीर्थ हो जाता है और ऐसी भूमि पर जिस
व्यक्ति की मृत्यु होती है वह तत्काल ही
मुक्त हो कर विष्णु लोक को जाता है यह निश्चित है
हमारे
वेदों में तीन माताओं की विस्तृत व्याख्या
की गई है जन्म देने वाली माता, गौ माता , पृथ्वी माता , जिनके ऋण से मनुष्य को कभी
भी मुक्ति नही मिलती , गौ माता के शरीर में सभी देवताओं का निवास है उदर में
कार्तिकेय, मस्तक में ब्रम्हा, ललाट में महादेव जी, सींगो के अग्रभाग में इंद्र,
दोनों कानो में अश्विनी कुमार, नेत्रों में चन्द्र और सूर्य, दांतों में गरुड,
जिह्वा में सरस्वती, अपान में सम्पूर्ण तीर्थ, मूत्र स्थान में गंगा जी, रोमकूपों
में ऋषि, मुख और पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण और कुबेर, वाम पार्श्व
भाग में तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुख के भीतर गन्धर्व, नासिका के अग्रभाग में में
सर्प,खुरों के पिछले भाग में लक्ष्मी, गौ-मूत्र में सर्व मंगला भगवती पार्वती,
चरणों के अग्र भाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज में प्रजापति और थनों में
भरे हुए प्रतिष्ठित सागर है
भगवान
श्री कृष्ण कहते है गौए सम्पूर्ण संसार में पवित्र है और गौए ही उतम आश्रय स्थान
है संसार की आजीविका के लिए ब्रम्हा जी ने उनकी सृष्टि की है तीनों लोको का हित की
कामना से गौ की सृष्टि प्रथम की गयी है इनके मूत्र और पुरीष से देव मंदिर भी
पवित्र हो जाते हैं गौए कास्य यज्ञों की मूलाधार है, इनमे सभी देवताओं का निवास है
ब्राहमण और गौ एक ही कुल के दो रूप है एक में मंत्र प्रतिष्ठित है और एक में हविष्य –पदार्थ ,
इन्ही गौओं के पुत्रों के द्वारा सारे संसार और देवताओं का भरण पोषण होता है तो क्यों न एक साथ मोक्ष और लक्ष्मी दोनों प्राप्त की जाये, निर्णय तो आपको करना है?
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