गोवेर्धन पूजा व् अन्नकूट
पर्व का विधान
दिवाली से अगले दिन कार्तिक शुक्ल
प्रतिपदा होती है इस दिन गोवेर्धन पूजा, गोपूजन, एवं अन्नकूट पर्व मनाया जाता है
गोवर्धन पूजा में सुबह मकान के दरवाजे के आगे गाय के गोबर का गोवेर्धन बनाकर उसकी
पूजा की जाती है साथ ही गौ पूजन भी किया जाता है
इस दिन चन्द्र दर्शन अशुभ माना जाता है प्रतिपदा के ही दिन यदि दूज भी हो तो एक दिन
पहले अन्नकूट पर्व मनाया जाता है भगवान को विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर पके हुए चावल पर्बत के
आकार में अर्पित किये जाते हैं इसे ५६ भोग भी कहते हैं इसी दिन मार्गपाली और राजा बलि
की पूजा भी की जाती है मार्गपाली के बंद नवार के नीचे होकर निकलने से सभी प्रकार
की सुख शांति रहती है तथा कई रोग दूर हो जाते है
गोवेर्धन पूजा कैसे करें – प्रातकाल उठकर दैनिक कार्यों से मुक्त हो कर
शरीर पर तेल मल कर स्नान करें, फिर स्वच्छ वस्त्र पहन कर अपने इष्ट देव का ध्यान
करें, इसके बाद अपने घर के सामने के मुख्य दरवाजे के सामने सुबह गाय के गोबर से
गोवर्धन पर्वत बनाये और उस पर वृक्षों की टहनी और फूलों की टहनियों से सजाएँ और पर्वत का विधिवत रूप से अक्षत,पुष्प और
नैवेध्य अर्पण करें और पूजन करें, पूजन करते समय निम्न प्रा र्थना करें-
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक
विष्णुबाहु कृतोच्छ्ट्रॉय गवां
कोटि प्रदो भव
इसके पश्चात गाय को स्नान कराएं और उनका
श्रंगार करें इसके पश्चात उनका गंध ,अक्षत, पुष्प से पूजन करें और उन्हें नैवेध्य
अर्पण कर निम्न मन्त्र का पाठ करें
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम
धेनु रूपेण संस्थिता
घृतं वहति यज्ञार्थे मम
पापं व्यपोहतु
शाम को पूजित गाय को गोवर्धन पर्वत का
मर्दन कराएं और उस गोबर से घर और आंगन लीपें, आजकल घरों के फर्श श्वेत संगमरमर के
बने होते हैं और घर के अंदर आप इसे विडम्बना ही कह सकते है की शहरों में आंगन नाम
की चीज ही गायब हो गई है इसलिए इन सबको प्रतीकात्मक रूप से ही कर लें नहीं तो फिर
बाद में पंडित जी से यही कहेंगे मेरे साथ ऐसा बुरा क्यों होता है मैंने तो कुछ भी
नहीं किया और पंडित जी आपको एक गोवर्धन पर्वत की तरह का पूजा का विधान बता देंगे
और उसे करना आपकी मजबूरी बन जायगी
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