Friday, November 18, 2011

वास्तुशास्त्र और सावधानियां /Vastushastra and Precautions taken while building Your Home or Commercial Complex

वास्तुशास्त्र और सावधानियां /Vastushastra and Precautions taken while building Your Home or Commercial Complex
वास्तु शास्त्र एक वैदिक विद्या है जिसे कुछ अशस्त्रियों ने अपने ही  ढंग से इसकी व्याख्या कर के इसे अमर्यादित और अशास्त्रीय बना दिया है और जन - सामान्य के मन में इस विषय को,  जानने  वालों के प्रति मन में खिन्नता  भर दी  है वास्तुशास्त्र का विशद वर्णन अथर्ववेद के उपवेद स्थापत्य वेद में विस्तारपूर्वक मिलता है परन्तु कुछ अशस्त्रियों और कुछ पुस्तक छापने वालों ने इस महान विद्द्या का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, यत्र-तत्र से चार किताबें पकड़ी और एक किताब का निर्माण किया और पुस्तक बाज़ार में बिकने को उपलब्ध हो जाती है ना कोई शोध ना कोई अन्वेषण और फिर वही दोषारोपण का अनवरत कार्य शुरू, पुस्तक  का लेखक लिखने के पैसे लेकर फरार और पुस्तक बेचने वाला भी मोटी कमाई कर नो दो ग्यारह, परन्तु पुस्तक क्रेता जब उस पुस्तक के आधार पर अपने गृह का निर्माण कार्य सम्पन्न करता है तो अच्छे के स्थान पर बुरा होना शुरू होता है तो वास्तुशास्त्रियों को  अनेको विशेषणों से सुशोभित करता है कि ये वास्तुशास्त्री चोर है और ना  जाने कितने नामकरण कर दिए जाते है मनुष्य कि प्रकृति ही ऐसी है वह सफलता के लिए केवल अपने आपको ही उतरदायी मानता है परन्तु असफलता के लिए सदैव दूसरों को उतरदायी ठहराएगा इन सब  से बचने के लिए पाठकों से नम्र निवेदन है कि यदि आप दो चार दवाइयों के नाम जान ले तो आप डॉक्टर नहीं बन जायेंगे, मैंने स्वयं ऐसे अनेक मित्रों से बातचीत में सुना है फलां का मकान तो वास्तु के अनुसार नहीं बना है परन्तु मित्रों, क्या दो किताबो के पढ़ने से आप वास्तुशास्त्री बन सकते है क्या आपको गृह के उर्जा क्षेत्र का पता चल सकता है? मेरा अपना अनुभव कहता है – नहीं , क्या आप जिस व्यक्ति का घर बनाने में सहायता कर रहें  है? उसकी जन्म कुंडली देखी है ? क्या उसकी कुंडली के ग्रहों का घर से  मिलान किया है आदि –आदि
इससे पहले कि आप अपने घर को अभिशप्त कर लें किसी विद्द्वान वास्तुआचार्य का परामर्श लें और अपने घर और जीवन दोनों में खुशियों की बहार लाए वास्तु हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत वह महान विद्द्या है जो आपके जीवन को अँधेरे से बाहर निकाल कर प्रकाश और आपके दुर्भाग्य को आपके जीवन से निकाल कर सौभाग्य के प्रकाश में ला सकती है किसी भी भूखंड पर निर्माण आपके पुरे जीवन को ही प्रभावित नहीं करता वरन आपके पुरे जीवन को नियत्रण करता है भूखंड का चयन किस दिन और किस नक्षत्र और किस महूर्त में होना है यह भूखंड के क्रेता को पता होना चाहिए, फिर उस भूखंड की क्रेता की आवश्यकतानुसार भूखंड की प्रकृति का परीक्षण कर लिया जाना चाहिए, उसके बाद उसका शानदार महूर्त, निर्माण का उचित क्रम, प्राकृतिक उर्जा का आनुपातिक लय से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह भूखंड कितने वर्षों में कितनी बड़ी सफलता देगा जिस प्रकार जन्म कुंडली देख कर व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली देख कर उसके कुल सामर्थ्य का अनुमान लगाया जा सकता है उसी प्रकार से यदि भूखंड पर वास्तु के अनुसार निर्माण कार्य कराया जाए तो भूखंड से अकल्पनातित रूप से लाभ लिया जा सकता है
जो भवन वाणिज्यिक प्रयोग के लिए बनाया गया होता है और भवन निर्माता   केवल भवन निर्माण कर के उसे बेचने की इच्छा रखता है ऐसे भवन निर्माता वास्तु नियमों का जम कर उल्लघंन करते है किसी भी भूखंड पर भवन निर्माण एक साल तक चलते रहते है यस उससे भी अधिक अवधि में भी भवन निर्माण पूरा नहीं हो पाता और बहुमंजिला भवन की निर्माण में तीन-चार साल लग जाते हैं अधिकांश वास्तुदोष छ महीने से एक साल की अवधि में पतन करा देते हैं जबकि वास्तु नियमों की पालना इतने समय में ही भवन में और भवन निर्माता के जीवन को खुशियों से भर देता है, यदि एक वाणिज्यिक भवन में शुरू से ही भूखंड की ऊर्जा प्रणालियों को नष्ट-भ्रष्ट होने ना दिया जाए और निर्माण कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है नही तो आप के भवन का कार्य बिच में ही रुक जायेगा और आपको कारन भी समझ नहीं आएगा, यदि आप किसी भूखंड में ईशान कोण से दक्षिण कोण की और बढ़ेंगे तो आपके निर्माण कार्य में बिच में ही रुक जायंगे या फिर इतनी अधिक समस्याएं आएंगी कि आप का निर्माण कार्य सदा के लिए बंद हो जायेगा जबकि इसके विपरीत आप दक्षिण कोण से निर्माण शुरू करें और धीरे –धीरे उतर और ईशान कोण की और बढे और अंत तक ईशान कोण को निर्माण कार्य से बच्यें रखें तो आपका प्रजेक्ट न कवक शीघ्रता से पूरा होगा बल्कि आपको वित् की उपलब्धता में भी कोई कमी नहीं आएगी,
वाणिज्यिक भवन का अर्थ ही वित् से है यदि आपको लक्ष्मी प्रप्ति शीघ्रता से चहिये तो उतर दिशा का निर्माण वास्तु सम्मत ढंग से कराएँ ऐसे भवन में उतर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक निर्माण हो तो भवन स्वामी का विकास तीव्र गति से होगा और वह समाज में ऊँची स्थिति को प्राप्त होगा, दक्षिणमुखी भूखंडों में उया पश्च्मिमुखी भूखंडों में सबसे बड़ी समस्या यह रहती है की आजकल भूखंड सरकार द्वारा आबंटित किये जाते हैं तो समस्या इससे भी अधिक गम्भीर हो जाती है भवन निर्माण करने वाले को आगे और पीछे की और सरकारी नियमों के अनुसार जगह छोडनी पडती है तो ऐसे में केवल भवन निर्माता को त्याग परिचय देकर भूखंड के ईशान कोण और उतर कोण की रक्षा करनी चहिये और यदि दक्षिण के बराबर ही उतर के बराबर जगह छोड़ दी जाए तो भूखंड अच्छा परिणाम देता है वाणिज्यिक या ओद्योगिक भवनों में बड़े भूखंड होने के कारण इस तरह की सावधानी आसान है परन्तु घरों में अत्यधिक दुष्कर है यदि वास्तुशास्त्र आधारित भवन बनाने के परिकल्पना की जाये तो किसी भी भवन में प्रथम आधार भूखंड की दिशा होती है , उसके बाद शुभ महूर्त में नीवं का विधिविधान से शुभ प्रारम्भ, ये दो महत्वपूर्ण भाग अकसर लोग जानबूझकर या फिर भवन बनाने की जल्दी में ध्यान नहीं देते और बाद में अक्सर उस भवन को लेकर उसका निदान ढूढते फिरते हैं इसलिए इन दो महत्वपूर्ण अवसरों को अन्यथा ना ले,
वास्तुशास्त्र के अनुसार भूखंड के एक दिशा में ८ वास्तुद्वार होते हैं और ४ दिशाओं में ३२, इन में से हर दिशा में केवल एक या दो द्वारा ही शुभ होते हैं परन्तु यह समस्या 10 या १५ फुट की दुकानों में या इस से कम या ज्यादा  हो तो  परेशानी का कारण अधिक बनती है ओद्योगिक भवनों में या आजकल मॉल जो आधुनिक युग के देन है वहाँ मर्म स्थानों पर निर्माण करा कर अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारते है और अच्छे-भले निर्माण का लालच के वशीभूत हो कर कुछ ऐसे निर्माण करा लेते हैं जिसके बुरे परिणाम बाद में भुगतने पड़ते हैं वाणिज्यक भवनों में मुख्य द्धारों को पहले निश्चित कर लेना चाहिए ताकि उस स्थान के देवता आपको शुभ परिणाम पहले से ही देने लगते हैं वायव्य कोण कोण का द्धार आपको मृत्यु या कारागार भी भेज सकता है नैऋत्य कोण का दरवाजा आपको हानि देता है आग्नेय कोण का द्धार संतान सम्बन्धी समस्याएं देता है और ईशान कोण का द्धार अग्नि दुर्घटनाओं को देता है जितने भी व्यवसायिक निर्माण कराए जाते हैं यदि भारी निर्माण पूर्व दिशा की अपेक्षा पश्चिम में हो और उतर की अपेक्षा दक्षिण में हो तो तो धन का आगमन सहज और राज्य से अधिक सहायता और उन्नत वंश परम्परा का भविष्य सुनिश्चित हो जाता है प्राय: सुनने और पढ़ने में आता है की दक्षिण पश्चिम में भारी निर्माण अधिक लाभप्रद होता है परन्तु इसके विपरीत दक्षिण दिशा ही भूखंड की सर्वाधिक शक्तिशाली जगह है जन्म कुंडली में दशम भाव दक्षिण दिशा का स्वामी है और जो मनुष्य के कर्मों का प्रतिनिधित्व करता है  अत: व्यावसयिक स्थानों में दक्षिण दिशा में बैठने का स्थान अधिक सुखद परिणाम देने वाला है वाराहमिहिर ने बड़े भवनों और राजाओं के प्रसादों के लिए और व्यावसायिक निर्माणों के लिए जो नियम दिए है यदि वास्तविकता के धरातल पर उन्हें उतारा जाए तो निश्चित ही व्यापारिक विस्तार को सैकड़ों गुना विस्तार दिया जा सकता है परन्तु यह भी निश्चित है की यह निर्माण दक्षिण दिशा में ही होंगे

1 comment:

  1. मैं आपकी सराहना करता हूं और मैं अपनी अगली पोस्ट पढ़ना चाहूंगा यह उपयोगी जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद अधिक जानने के लिए कृपया पढ़ें
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