Tuesday, September 6, 2011

Gemstone-Ruby - Manikya

Ruby – Gemstone

माणिक्य / Ruby
विश्व में बहुमूल्य,अल्प मात्रा में प्राप्त होने वाला, विशिष्ठ गुणों से युक्त, तेजोमय एवम सभी प्रकार से गुणों से युक्त पदार्थ या प्राणी को “ रत्न “ की संज्ञा दी जाती है परन्तु हम यहाँ केवल बहुमूल्य पत्थरों को ही रत्न कह रहे हैं रत्नों की कुल संख्या ८४ मानी जाती है परन्तु विद्वानों में इस पर मतभेद है इन ८४ रत्नों में रत्न प्रमुख माने गए हैं और भारतीय ज्योतिष में इन नवग्रह के नवरत्न हैं विभिन्न रत्नों का व्यक्ति विशेष पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है इसलिए जब कभी भी व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में कोई ग्रह अशुभ हो तो ज्योतिष-आचार्य उसे उस ग्रह विशेष के आधार पर रत्न पहनने का परामर्श देते हैं अत: सबसे पहले सूर्य के रत्न माणिक्य के बारे में जानते हैं
सूर्य “ का रत्न माणिक्य है इस रत्न को विभिन्न भाषाओं में विभिन्न नामों से जाना जाता है हिंदी भाषा में इसे माणिक या माणक कहते हैं संस्कृत में इसे पद्मराग या माणिक्य कहा जाता है फारसी भाषा में इसे याकुतसुर्ख कहते है उर्दू भाषा में इसे चुन्नी कहते है और अंग्रेजी भाषा में इसे रूबी कहा जाता है माणिक्य कई रंगों में मिलता है यह लाल,सिंदूरी,और गुलाबी रंगों में भी पाया जाता है इस रत्न की प्राप्ति स्थान भारत की गंगा नदी या हिमालय के अतिरिक्त श्री लंका, अफगानिस्तान, म्यांमार और इंडोनेशिया में पाया जाता है
१.     इस रत्न को यदि गाय के दूध में डाल दे तो दूध का रंग गुलाबी दिखने लगता है
२.     इस रत्न को कमाल की कली पर रखे तो कली तुरंत ही खिल उठती है
३.     माणिक्य को यदि सफ़ेद मोतियों के बीच रखे तो सब मोती माणिक्य के रंग के हो जाते हैं
४.     माणिक्य को यदि सूर्य की किरणों में देखे तो उसमें से लाल रंग की करने प्रस्फुटित होती प्रतीत होती हैं
अच्छा और सुंदर माणिक्य चिकना, चमकीलापन लिए हुए, सुंदर आभायुक्त और कांति लिए होता है परन्तु इस प्रकार का माणिक्य आपको मिल ही जाये यह आवश्यक नहीं है इसलिए माणिक्य को क्रय करते समय उसके दोषों को जरुर देखना चाहिए
१.  जो माणिक्य दो रंगों से युक्त हो उसे धारण करने से पिता को कष्ट प्राप्त होता है अत: दो रंगों से युक्त माणिक्य धारण नहीं करना चाहिए
२. जो माणिक्य मकड़ी के जाले की तरह जाल हो इस प्रकार के माणिक्य को धारण करने से धारण करने वाले को कष्ट प्राप्त होता है और वह कई प्रकार के कष्टों से पीड़ित हो जाता है
३. गाय के दूध के माणिक्य को धारण करने से धन का विनाश और ह्रदय में उद्धविग्नता रहती है
४. जिस माणिक्य का रंग धुऐं के समान हो ऐसे माणिक्य को कभी भी धारण नहीं करना चाहिए इस प्रकार के माणिक्य को धारण करने से हर प्रकार की विपदा का सामना करना पड़ता है
५. जिस माणिक्य में अनेक प्रकार दोष हो ऐसे माणिक्य को धारण करने से अनके प्रकार के रोग, व्याधि और आकस्मिक दुर्घटनाओं की सम्भावना अधिक रहती है
६. जो माणिक्य काले रंग का हो ऐसा माणिक्य धन नाश और अपयश देने वाला होता है
अत: माणिक्य धारण करने से पहले इसके दोषों को परख ले ताकि कंही लाभ के स्थान पर हानि ना हो जाये
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी,पुरुष तथा क्रूर ग्रह है यह एक राशि पर एक मास में भ्रमण करता है कृतिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाडा इसके अपने नक्षत्र हैं मेष राशि में यह उच्च होता है तथा तुला राशि में नीच होता है वृश्चिक, धनु, कर्क और मीन राशि मित्र राशियाँ है सूर्य काल पुरुष की आत्मा है इस ग्रह के द्वारा जन्म कुंडली में पिता का विचार किया जाता है
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य अग्नि तत्व तथा मध्यम कद वाला शुष्क ग्रह है यह मनुष्य में पुरुष के दाएँ तथा स्त्री जातक के बाएँ नेत्र, अस्थि,सिर, ह्रदय, शक्ति, मेद, रक्त तथा पित को प्रभवित करता है इसके निर्बल या अशुभ होने पर या रोग कारक होने पर क्षय रोग, पित की अधिकता, नेत्र रोग, शिरोवेदना, ह्रदय रोग, बुखार, रक्त का बहना, चर्मरोग, मिर्गी रोग और पेट की बिमारियों का प्रकोप होता है
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि सूर्य अपने नक्षत्रों को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक को माणिक्य धारण करना चाहिए
यदि जातक की कुंडली में सूर्य प्रथम भाव में हो तो कम संतान देने वाला तथा पत्नी के लिए अरिष्ट कारक होता है
यदि जातक के की कुंडली में सूर्य दिवितीय भाव में हो तो धन की प्राप्ति में बाधा और नोकरी में अनेकों बाधाएं उत्पन्न करता है और जातक के नेत्रो के लिए दूसरे भाव का सूर्य हानिकारक होता है
यदि जातक की कुंडली में सूर्य तीसरे भाव में स्थित हो तो कनिष्ट भ्राता के जीवन को हानि देता है
यदि सूर्य चतुर्थ भाव में हो तो पिता के साथ अनबन रहती है यद्यपि जातक पिता को पूर्ण सम्मान देता है चतुर्थ भाव का सूर्य दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है जो जातक की आजीविका को पप्रभावित करता है और चतुर्थ भाव का सूर्य पिता के सुख में कमी करता है
यदि सूर्य सप्तम भाव में स्थित हो तो जातक के स्वयं के स्वास्थ्य के हानिकारक होता है
यदि सूर्य एकादश भाव में स्थित हो तो संतान के लिए हानिकारक होता है तथा विद्या में कमी करता है
यदि सूर्य द्वादश भाव में स्थित हो तो आखों की रौशनी कम करता है
परन्तु यहाँ यह विचारणीय है कि सूर्य के साथ दूसरे ग्रहों के युति और उस पर किन-२ ग्रहों की दृष्टि है इसलिए विद्वान दैवज्ञ के परामर्श से ही माणिक्य को धारण करना चाहिए

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