Tuesday, September 6, 2011

Kuber Sadhna / Kuber Mantra

कुबेर- साधना

कुबेर धन के देवता हैं ओर इस पृथ्वी पर जो भी धन उपलब्ध है  वह  धन चाहे खजाने में हो या पृथिवी के अंदर छुपा हुआ इस सभी धन का स्वामी कुबेर है कुबेर की साधना आकस्मिक धन लाभ के लिए की जाती है जिस पर कुबेर की कृपा हो जाये उसे कभी भी धन की कमी नहीं रहती यह तथ्य निर्विवाद सत्य है नोकरी पाने के लिए, लाटरी से धन पाने के लिए, व्यापार को बढाने के या किसी भी दुसरे स्रोत्र से धन प्राप्त करने के लिए कुबेर की साधना की जाती है यह साधना अत्यंत दुर्लभ है परन्तु इस आधुनिक युग में जब हर व्यक्ति को सुख-समृद्धि चाहिए तो इसलिए इस साधना को कैसे करना चाहिए ये दिया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक लोग इस का लाभ उठा सके इस साधना से सम्बन्धित कोई प्रशन यदि मन में हो तो आप उस  ई -मेल से पूछ सकते हैं  

यक्षाय  कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यधिपतये।
धनधान्यसमृद्धि मे देहि दापय स्वाहा

इस कुबेर मन्त्र को किसी भी शिव मंदिर में जो नदी के किनारे पर या सरोवर पर स्थित हो वहां पर कुश के आसन पर या उनी आसन पर बैठकर त्रिपुष्कर योग या द्विपुष्कर योग या दीपावली या नवरात्रों में सवा लाख मत्रों का जप प्रारम्भ करें तथा प्रतिदिन नियम पूर्वक उतनी ही माला का जप करें जितनी माला का जप प्रथम दिवस में प्रारम्भ किया था जप के लिए समय निश्चित होना चाहिए जो समय एक बार निश्चित हो गया वही दिन प्रतिदिन निश्चित  होना चाहिए नहीं तो सफलता नही मिलती , ब्रम्हचर्य का पालन मन, कर्म और वचन से अनिवार्य है मन्त्र जप से पहले षोडशोपचार द्वारा गणपति की पूजा करें तथा बाद में अथर्वशीर्ष का पाठ करें अथवा
 ॐ गं गणपतये नम: की एक माला का जप करें
विनियोग :- अस्य श्री कुबेर मन्त्रस्य विश्र्वा ऋषि: बृहती छन्द: शिवमित्र धनेश्वरो  देवता ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग:
न्यास- विश्रम ऋषये नम: शिरसी, बृहती छन्दसे नम: मुखे, शिवमित्र धनेश्वर देवतायै नम: ह्रदये विनियोगाय नम: सर्वांगे।
ह्र्दयादि न्यास -  यक्षाय ह्रदयाय  नमः कुबेराय शिरसे स्वाहा, वैश्रवणाय शिखायै वषट् धन  धान्याधिपतये कवचाय  हुम, धन धान्य समृद्धि मे नेत्रत्रयाय वोषट्, देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फ़ट्
करन्यास यक्षाय - अङ्गुष्ठाभ्यां नमः, कुबेराय तर्जनीभ्यां नमः, वैश्रवणाय मध्यमाभ्यां नमः, धनधान्याधपतये अनामिकाभ्यां नमः, धन धान्य समृद्धिं मे कानिष्टिकाभ्यां नमः, देहि दापय स्वाहा करतल  करपृष्ठाभ्यां नमः
ध्यान -  मनुजवाहयाविमान वर स्थितं  गरुड  रत्न निभं निधि नायकम्
           
शिवसखं मुकुटअदिवि भूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलनम

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