Wednesday, August 10, 2011

Profession & Your Destiny

पाण्डित्यं शोभते नैव न शोभन्ते गुणा नरे। शीलत्वं नैव शोभते महालक्ष्मी त्वया बिना॥ 
तावद्विराजते रूपं तावचछिलमं विराजते ।विराजते रूपं तावचछिलमं विराजते तावद् गुणा नराणां यावल्लक्ष्मिःप्रसीदति॥ लक्ष्मी त्वयाल्ङ्ग्कृता मानवा ये,पापैर्विमुक्ता नृप लोक्मन्या।
गुणैर्विहिना गुणिनो भवन्ति, दु:शीलिनः शीलवतां वरिष्ठाः॥
लक्ष्मीर्भुष्य्ते रूपं लक्ष्मीर्भुष्य्ते कुलम्।
लक्ष्मीर्भुष्य्ते विद्यां सर्वालक्ष्मीर्विषिष्य्ते॥
लक्ष्मी के आभाव में विद्वता,पांडित्य,गुण तथा शील्युक्त व्यक्ति भी प्रभावरहित एवम आभाविहीन हो जाते हैं। लक्ष्मी की कृपा होने से व्यक्तिओं में रूप,शील और गुण विद्यमान होते हैं।जिन पर लक्ष्मी की कृपा होती है, वे समस्त पापों से मुक्त होकर राजा द्वारा प्रशंसनीय होते हैं तथा समाज में पूजनीय होते हैं। भगवती लक्ष्मी की अनुकम्पा से सोंदर्य,शिक्षा तथा कुल की गरिमा बड़ती है। तथा गुणहीन,शीलविहीन व्यक्ति भी गुणवान तथा शीलवान समझे जाते हैं। इसीलिए मारकंडे द्वारा रचित " दुर्गा सप्तशती " में ऋषि मारकंडे ने कहा है " या देवी सर्वभूतेषु वृति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:॥ हमारे ऋषियों ने वृति या आजीविका या नोकरी को देवी का स्थान दिया है इसीलिए किसी भी व्यक्ति के जीवन में आजीविका या नोकरी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, परन्तु कई बार बुद्धिमान व्यक्तियों को भी आजीविका या नोकरी के लिए दर-दर भटकते देखा है। दूसरी ओर ऐसे व्यक्ति भी हैं,जो किंचित मात्र प्रयास से ही बड़े-बड़े पदों को सुशोभित करते हैं तो मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से कौन्धता है कि ऐसा क्यूँ हुआ? कैसे हुआ? परन्तु एक साधारण मनुष्य के पास इस प्रश्न का कोई समाधान नहीं है लेकिन हमारे ऋषियों ने इस रहस्य को ज्योतिष-शास्त्र के द्वारा जान लिया और व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में होने वाली शंकाओ का निराकरण किया।
ज्योतिष-शास्त्र के महान आचार्य वराहमिहिर और अन्य ज्योतिष-शास्त्रकार आजीविका या नोकरी के प्रश्न पर विचार करते समय दशम भाव को ही मुख्य मानते हैं। इन आचार्यों के अनुसार जो ग्रह दशम भाव में होगा जातक की आजीविका या नोकरी उसी ग्रह के अनुसार निर्धारित होती है । यह स्थान लग्न से, सूर्य से तथा चन्द्र से भी हो सकता है इन ग्रहों से दशम स्थान में जिस ग्रह की स्थिति अधिक बलवान होगी जातक की आजीविका या नोकरी उसी ग्रह के गुण, स्वाभाव के अनुसार होगी। कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार व्यवसाय का विचार दशम भाव का स्वामी जिस नवांश में स्थित हो उस नवांश के स्वामी के अनुसार उस की आजीविका होती है।
ज्योतिष- शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थ नारद पुराण, मानसागरी, बृहतजातक, बृहतपराशर आदि अनेकों ग्रंथो में लग्न को ही आजीविका या नोकरी से गहरा सम्बन्ध माना गया है। नारद पुराण में जन्म लग्न और चन्द्र लग्न से दशम स्थान में स्थित ग्रह के गुण धर्म के अनुसार आजीविका या नोकरी का विचार करना चाहिए परन्तु लग्न, चन्द्र लग्न तथा सूर्य लग्न से दशम भाव के स्वामी जिस नवांश में होगें उस नवांश के स्वामी से उस जातक की आजीविका या नोकरी का विचार करना चाहिए। परन्तु ये ध्यान रखने योग्य बात है कि यदि नवांश का का स्वामी बलवान होगा तो धन प्राप्त करने में आसानी होगी और यदि नवांश का स्वामी दुर्बल होगा तो धन मिलने में कठिनाई होगी।
मानसागरी के अनुसार लग्न या चन्द्र लग्न से दसवें स्थान में सूर्य हो तो ऐसे जातक को कई प्रकार के व्यवसाय से लाभ प्राप्त होता है1.परन्तु यदि सूर्य दशम स्थान में शत्रु ग्रह के साथ हो तो ऐसे जातक को अपने जीवन में कष्ट उठाने पड़ते हैं और उसे साधारण सी जीविका पर ही संतोष करना पड़ता है।
2. यदि लग्न या चन्द्र से दशम भाव में मंगल हो तो ऐसा जातक चोरी, हिंसा ( यहाँ चोरी या हिंसा से तात्पर्य सभी प्रकार की चोरियों से है तथा हिंसा से तात्पर्य सभी प्रकार की हिंसा से है) से धन प्राप्त करने में लगा रहता है। परन्तु यदि मंगल पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या शुभ ग्रहों से संम्बंध हो तो जातक पुलिस या सेना या रसायन-शास्त्री या दवाई विक्रेता का कार्य करता है।
3.यदि लग्न या चन्द्र से दशम भाव में बुध ग्रह हो तो ऐसा व्यक्ति एकाउंटटेंट, लेखक या अध्यापक होता है।4. दशम भाव का गुरु जातक को अनेकों प्रकार से लाभ देता है ऐसा जातक ज्योतिष शास्त्र का प्रकांड विद्वान होता है।
5. दशम भाव का शुक्र जातक को अध्यापन , विधि या न्यायधीश यस विद्या के कार्य से जीविका देता है ।
6. दशम भाव का शनि जातक को चमड़े के व्यापार से आजीविका देता है।

No comments:

Post a Comment