Wednesday, August 10, 2011

KALSARP YOG - A CURSE or A BOON

कालसर्प योग
ज्योतिष  शास्त्र में विभिन्न प्रकार के योगों का वर्णन है  परन्तु जितना भयभीत कर देने वाला योग कालसर्प योग है उतना कोई नहीं है कालसर्प योग की कल्पना मात्र से ही व्यक्ति डर जाता है और ना जाने कितनी ही आशंकाओ से भयभीत हो जाता है ज्योतिष शास्त्र में सामान्यतया इस योग को अशुभ अवम नेष्ट मन जाता है पराशर,गर्गाचार्य,भृगु आदि आचार्यों ने इस योग को मान्यता दी है
कालसर्प योग बारह प्रकार के हैं :- १ अनंत कालसर्प योग २ कुलिक कालसर्पयोग ३ वासुकी कालसर्प योग ४ शंखपाल कालसर्प योग ५ पदम कालसर्प योग ६ महापद्म कालसर्प योग ७ तक्षक कालसर्प योग ८ कर्कट कालसर्प योग ९ शंखचुड कालसर्प योग १० घातक कालसर्प योग ११ विषधर कालसर्प योग १२ शेषनाग कालसर्प योग
यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि कालसर्पयोग का निर्माण जभी होता है जब सभी ग्रह राहू और केतु के मध्य में स्थित हो
उपरोलिखित योगों की परिभाषा एवम संक्षिप्त व्याख्या व् फल इस प्रकार से है
. अन्नत कालसर्प योग :- जब राहू और केतु पहले और सातवें भाव में हों तथा सभी शेष  ग्रह इन दो ग्रहों  के मध्य में हों तो अनंत कालसर्प योग बनता है यह योग व्यक्ति के जीवन को संघर्षपूर्ण , स्वास्थ्य  तथा पारिवारिक स्थिति को कलहपूर्ण तथा विशेषतया रोगों को बड़ाता है
. कुलिक कालसर्प योग :-  जब राहू और केतु दुसरे और आठवें भाव में हो तथा समस्त ग्रह इन सो ग्रहों के बीच हो तो कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है यह योग धन, स्वास्थ्य , परिवार , एवम रोगों से व्यक्ति को परेशान रखता है विशेषतया धनबाधा, अपयश  देता है
. वासुकी कालसर्पयोग :- जब राहू और केतु तीसरे और नवम भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है यह योग जातक के छोटे भाई व् बहनों को परेशनी देता है तथा ऐसा व्यक्ति धर्म विरुद्ध रहता है ऐसा जातक अत्यधिक उत्साही और पराक्रम के कारण अपने विरुद्ध वातावरण का निर्माण कर लेता है
. शंखपाल कालसर्पयोग :- जब राहू और केतु चतुर्थ एवम दशम भाव में स्थित हो तो शंखपाल कालसर्पयोग का निर्माण होता है इस योग में विद्या में बाधा , अपयश , कर्मक्षेत्र में मन के अनुकूल सफलता नही मिलती है, माता-पिता को कष्ट , वाहन से परेशानी होती है इस भाव से माता -पिता की और से परेशानी तथा कार्यक्षेत्र में मनचाही सफलता प्राप्त नहीं होती
. पदम कालसर्पयोग :- पंचम और एकादश भाव में राहू और केतु इस योग का निर्माण करते हैं इस योग के कारण विद्या में बाधा, सन्तान  को कष्ट, सन्तान प्राप्ति में विलम्ब या पुत्र शोक होता है विशेष रूप से स्त्री को योनी रोग, पेट में गैस तथा विवाह के भंग होने के प्रबल संभवाना होती है
६ महापद्म कालसर्पयोग:- राहू और केतु षष्ट और बारहवें भाव में इस योग का निर्माण करते हैं इस योग के कारण जातक के पिता को अपने कार्य में लगातार बाधाएँ आती हैं व्यापार और दुसरे कार्य में हानि होती है चरित्र की महता ऐसे जातक के लिए कोई मूल्य नहीं रखती है यह योग जातक को राजा से रंक बना देता है तथा उसकी हर जगह हर होती है
. तक्षक कालसर्पयोग :- जब राहू सातवें और केतु प्रथम भाव में हो तो इस योग कस निर्माण होता है इस योग के कारण स्वास्थ्य हानि , धनहानि , पति-पत्नी में प्रेम का अभाव तथा तनावपूर्ण वैवाहिक स्थिति, विजातिये विवाह का योग, जुआ एवम सट्टे का शोकीन, आदि इसके कुफल है
. कर्कट कालसर्पयोग :- जब राहू और केतु अष्टम और केतु दुसरे भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है धनहानि, व्यापार में हानि , पदच्युति, दुर्घटना, चोट, बीमारी और मुकदमें में परेशानी होती है अनेकों कष्टों से जातक पूरी  तरह से असंतुष्ट रहता है
. शंखचुड कालसर्पयोग :- जब राहू और केतु नवम और तीसरे भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है यह योग भाग्य भाव तथा पराक्रम भाव में घटित होता है इसलिए इन भावों को प्रभावित  करता है तथा भाग्य-हानि ,धर्महानि इसके मुख्य कुफल हैं
. शंखचुड कालसर्पयोग :- जब राहू और केतु नवम और तीसरे भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है यह योग भाग्य भाव तथा पराक्रम भाव में घटित होता है इसलिए इन भावों को प्रभावित  करता है तथा भाग्य-हानि ,धर्महानि इसके मुख्य कुफल हैं
१०. घातक कालसर्पयोग :- राहू और केतु जब दशम और चतुर्थ भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है इस योग के फलस्वरूप नोकरी और व्यापार में बाधा, पारावारिक संम्बंध कलहपूर्ण, इच्छित समय पर सहयोग नहीं मिलता इस योग में विदेश जाने के अवसर प्राप्त होते है
११. विषधर कालसर्पयोग :-  राहू और केतु जब ग्यारवे और पांचवे भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है रात्रि में नीद का ना आना, सिर में पीड़ा, अर्धविक्षिप्त सी अवस्था, संतान की और से कोई भी सहयोग ना मिलना तथा सम्पूर्ण जीवन संघर्षमय होता है
१२. शेषनाग कालसर्पयोग :- राहू और केतु जब बारहवें और छ्टे भाव में हो तो इस योग का निर्माण होता है इस योग के परिणामस्वरूप शत्रुओ की अधिकता, मुकदमें और झगड़े, अधिक खर्च इस योग के अशुभ परिणाम है
राहू और केतु की अशुभता जातक के गोचर एवम कुंडली के भावो के अनुरूप कम या ज्यादा होती है। यदि गोचर में राहू और केतु की अशुभता बलवती है और कालसर्पयोग को अधिक बलवान बना रहे हो या राहू और केतु नवान्श  कुण्डली मे  वर्गोतमी हो तो योग अधिक प्रतिकूल फल देने वाला होता है । ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प योग के निदान या उपायों के रूप में मन्त्र , ओषधि , दान , स्नान का वर्णन हैऔर यही कालसर्पयोग शांति करवाने के बाद उत्कृष्ट जीवन प्रदान करता है जैसे पंडित जवाहर लाल नेहरु , धीरुभाई अम्बानी आदि अत: कालसर्प योग से भयभीत होने की इतनी आवश्यकता नहीं है भगवान शिव महामृत्युअञ्जय मन्त्र का निरन्तर जप जातक को जीवन में सफलता के साथ-साथ गुणों में भी वृद्धि करता है
" ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं उरवरुकमिव बन्धनानमृत्योर्मुक्षिय मामृतात "    "ॐ हों जुं सः ॐ भूर्भवः स्वः ॐ "  या आप शिव के पञ्चाक्षरी मन्त्र का जप भी कर सकते है " ॐ नमः शिवायः" इस प्रकार से राहु के मन्त्र के जपने से भी कालसर्पयोग के दुष्परिणामो से मुक्ति मिलती है " ॐ राहुवे नमः" यह मन्त्र ७२००० जप करने का विधान है
रुद्राअष्टाध्यी का नित्य-प्रतिदिन पाठ करें एवम भगवान आशुतोष का कम से कम सोलह बार रुद्राभिषेक नमक-चमक से करवाने का विधान है।परन्तु यह सब किसी विद्वान ब्राहमण के द्वारा ही करवाएं अन्यथा इन सबका फल नही मिलता है।
जातक को अपनी मध्यमा अंगुली में सर्प के आकार की एक अंगूठी में आगे गोमेद एवम पूंछ की और लहसुनिया लगवा कर धारण करना चाहिए। परन्तु गोमेद एवम लहसुनिया कितने वजन का हो यह सब ग्रहों के अंशो पर निर्भर करता है अत: किसे भी विद्वान देवज्ञ से परामर्श करें।
आप की टिप्पणी लेख के लिए महत्वपूर्ण है इनसे मुझे प्रोत्साहन मिलेगा और मैं आपके लिए ओर अच्छा लिखने का प्रयत्न करूंगा ।
धन्यवाद,
प्रमोद पंडित

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