Wednesday, August 10, 2011

Vastu-Shastra & Health

वास्तुशास्त्र और स्वास्थ्य
वास्तु शास्त्र के प्राचीन ग्रंथो जैसे विश्वकर्मा पुराण, विश्वकर्मा प्रकाश, वास्तु प्रदीप , वास्तु रतन ,वास्तु मुक्तावली , बृहद सहिंता ,मत्स्य पुराण, अथर्व वेद के उप-वेद स्थापत्य वेद में वास्तु सम्बन्धी ज्ञान का वर्णन विस्तार पूर्वक मिलता है I वास्तु शास्त्र गृह निर्माण की वह कला हैजिसे अपना कर मनुष्य अपना कल्याण ही नहीं अपितु अपनी आने वाली संतान का भी कल्याण कर सकता है। वास्तु शास्त्र का मूल आधार पञ्च महाभूत है जो इस प्रकार है -१ पृथ्वी २. जल ३. अग्नि ४ .वायु ५ आकाश वास्तुशास्त्र इन पंच महाभूतों के आपसी सामजस्य की कला है अखिल विश्व इन्ही पञ्च महाभूतो के सामजस्य का परिणाम है पूरे विश्व में कोई भी ऐसी वस्तु नही है,जहाँ ये पञ्च महाभूत ना हों I इसीलिए हमारे ऋषि - मुनियों ने मानव के उत्थान के लिए अद्भुत शास्त्र की रचना की है वास्तु शास्त्र के कुछ नियमो के पालन से ही व्यक्ति अपने गृह में स्वास्थ्य, समृद्धि एवम खुशहाली को पाने में सक्षम हो जाता है। एक भवन निर्माण करने वाला अभियंता सुंदर और मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमे रहने वाले व्यक्ति के सुख और समृद्धि की कोई भी गारंटी दे पाना असभंव है,लेकिन वास्तु शास्त्र इन सबकी गारंटी देता है
उतर दिशा- यदि आपके घर की उतर दिशा ऊँची है तो घर के व्यक्ति गुर्दे सम्बन्धी रोगों से, कान के रोगों से , घुटने सम्बन्धी रोगों से पीड़ित हो जाते है कुंडली का चतुर्थ भाव इस स्थान का कारक है उतर दिशा ऊँची होने से घर की औरते बीमार रहती हैं  यदि आपके घर की उतर दिशा ऊँची है तो घर के व्यक्ति गुर्दे सम्बन्धी रोगों से, कान के रोगों से , घुटने सम्बन्धी रोगों से पीड़ित हो जाते है कुंडली का चतुर्थ भाव इस स्थान का कारक है उतर दिशा ऊँची होने से घर की औरते बीमार रहती हैं                                                                                                                                       दक्षिण दिशा - यदि घर की दक्षिण दिशा में कोई भी छिद्र हो तो यह घर के सभी सदस्यों के लिए अशुभ होता है घर के दक्षिण में पानी की निकासी, जल का भंडारण, वहां कूड़े का रखना या घर का कबाड़ा रखना अशुभ होता है तथा गृह स्वामी को दिल की बीमारी, उच्च रक्त -चाप , संधि- रोग, रक्त-अल्प्त्ता, पाण्डु-रोग, नेत्र - रोग एवम पेट के रोग हो जाते है यदि दक्षिण दिशा में घर की दीवारें उतर की अपेक्षा नीची होगीं तो गृह स्वामी को हृदय सम्बन्धी रोग होते हैं गृह का दक्षिणी भाग यदि नीचा होता है या उतर की अपेक्षा अधिक खाली होता है तो घर की सित्रियों सदैव भयानक रोगों से ग्रस्त रहती हैं दक्षिण दिशा का स्वामी यम होता है और प्रतिनिधि मंगल ग्रह है इसलिए घर को बनाते समय दक्षिण दिशा की ओर गृह स्वामी को ज्यादा ध्यान देना चाहिए                               
पूर्व दिशा - पूर्व दिशा का ऊँचा होना गृह स्वामी के लिए अशुभ होता है एवम गरीबी लेकर आता है उसकी सन्तान शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ जाती है और उसे एवम उसके परिवार को पेट एवम लीवर की बिमारियों से ग्रस्त रहना पड़ता है पूर्व दिशा का ऊँचा होना और पश्चिम की ओर झुकाव नेत्र के रोगों को निमन्त्रण देना है ओर कभी -२ तो ऐसा व्यक्ति लकवे से भी पीड़ित होते है यदि पूर्व की दीवार पश्चिम की दीवार की अपेक्षा ऊँची होगी तो उस घर में संतान की हानि होने की प्रबल संभावना होती है पूर्व में शोचालय घर की औरतों को रोगों से ग्रस्त रखता है घर के पश्चमी भाग यदि नीचा है तो गृह स्वामी की अकाल-मृत्यु हो जाती है                                                                              
पश्चिम दिशा - यदि किसी घर का पश्चिमी भाग नीचा होगा तो फेफड़े,मुंह,चमड़ी के रोगों के  होने की सम्भावना होती है तथा उस घर के पुरुष सदस्यों को रोगों से ग्रस्त रहना पड़ता है यदि पश्चमी भाग में पानी की निकासी पश्चमी भाग की ओर से ही है तो उस घर के पुरुष असाध्य रोगों से पीड़ित हो जाते हैं पश्चिमी दिशा में रसोई का स्थान पित की अधिकता करता है 
उपाय- उतर दिशा की ढाल गृह स्वामी को उतम स्वास्थ्य प्रदान करती है और आयु में वृद्धि करती है गृह स्वामी को बुधवार के व्रत रखने चाहियें एवम बुध यंत्र की स्थापना करनी चाहिए घर की दीवारों को हरे रंग से रंगना चाहिए
उपाय- (दक्षिण दिशा) गृह का निर्माण  करते समयदक्षिण दिशा को  उन्नत करना चाहिए और दीवारें उतर की अपेक्षा ऊँची रखनी चाहियें तो घर का हर सदस्य स्वस्थ, सम्पन्न एवम समृद्ध होगा हनुमान जी की उपासना करें घर के पानी को सदैव इशान कोण से ही निकालें तो घर के अंदर हर प्रकार का सुख और समृद्धि स्वयं ही उपलब्ध हो जाएगी यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में है तो घर के के द्वार पर दक्षिणावर्ती सुंड वाले गणपति की विधिवत स्थापना करवाएं
 उपाय- (पूर्व दिशा) इस दिशा में जल का होना शुभ होता है प्रयत्न करें कि पानी की टोंटी पूर्व दिशा में ही हो पूर्व दिशा में सूर्य यंत्र की स्थापना करवाएं घर का पूर्वी भाग पश्चमी भाग से नीचा होना चाहिए तो वंश वृद्धि,यश,मान-सन्मान तथा लक्ष्मी की प्राप्ति स्वयं होने लगेगी
उपाय- (पश्चमी दिशा ) पश्चमी दिशा को पूर्व की अपेक्षा ऊँचा रखें पश्चमी दिशा की और वृक्ष लगायें और शनिवार के उपवास करें 
आप की टिप्पणी लेख के लिए महत्वपूर्ण है इनसे मुझे प्रोत्साहन मिलेगा और मैं आपके लिए ओर अच्छा लिखने का प्रयत्न करूंगा ।
धन्यवाद,
प्रमोद पंडित

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