Wednesday, August 10, 2011

PROFESSION & BUSINESS AND PITR-DOSH

पितृ-दोष और आजीविका
ना जायते मिर्यते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा भूयः।
अजो नित्यः शाशवतोSयं पुराणो हन्यते हन्यमाने शरीरे    
” आत्मा किसी भी काल में न तो जन्म लेती है, न मरती है तथा ना यह नष्ट होती है यह अजन्मा,नित्य शाश्वत तथा पुरातन है देह का वध होने पर भी यह आत्मा का वध नहीं होता है “
वैदिक संस्कृति में आत्मा को अजन्मा ,नित्य और शाश्वत माना जाता है हिन्दू धर्म की मान्यताओ के अनुसार मृत्यु के बाद इस शरीर का नाश होता है परन्तु आत्मा का नहीं । यह विभिन्न योनियों में अपने कर्मों के अनुसार जन्मता हुआ दुःख और सुख भोगता रहता है। व्यक्ति अपने पिछले जन्मों में जो कर्म करता है उसे अगले जन्म में उसी प्रकार की योनी में जन्म लेना पड़ता है यही शाश्वत नियम है यही सनातन विज्ञान है। हमारे विभिन्न धर्म-ग्रन्थों में बार-२ इस का उल्लेख हुआ है परन्तु यह भी एक आश्चर्य ही है कि मनुष्य सब कुछ जानते हुए भी बुरे कर्मों को नहीं छोड़ता है। कोई भी व्यक्ति पिछले जन्मों में किस प्रकार के कार्य करता है यह उस व्यक्ति कि जन्म कुंडली बता देती है और पिछले जन्मों के पापों का उस कुंडली में विभिन्न दोषों से जाना जाता है उन दोषों में एक प्रबल दोष है - पितृ-दोष।
जिस जातक की कुंडली में पितृ-दोष होता है उस जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते है ऐसा जातक बहुत ही विषम परिस्थितियों में जीने को विवश हो जाता है। इस प्रकार के जातक का मन अशांत,गुप्त-चिंता से पीड़ित, विवाह-सम्बन्धी परेशानियाँ, स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ, अपयश, कार्यों में विघ्न और अनेकों प्रकार की बाधाएँ ऐसे जातक के जीवन में आती रहती है। इसलिए जिस जातक के भी कुंडली में में इस प्रकार का दोष हो उसे इस दोष का निवारण अवश्य करा लेना चाहिए।
किसी भी जातक की जन्म कुंडली में जब सूर्य और राहू या सूर्य और शनि ग्रह प्रथम, दिवितीय, चतुर्थ्, पञ्चम, सप्तम, नवम या दशम भाव मे यह योग घटित हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग जातक की कुंडली में जिस भाव में होता है उस जातक को तदनुसार ही उसके फल मिलते हैं।
1.यदि जातक की कुंडली में यह योग प्रथम भाव में घटित होता है तो जातक को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ, मानसिक-परेशानियाँ, विवाह सुख में कमी बनी रहती है
2. यदि जातक के दुसरे भाव में यह योग घटी होता है तो जातक के परिवार में क्लेश, धन की कमी और आर्थिक रूप से ऐसा जातक सदैव उलझनों से ग्रसित रहता है।
3.यदि जातक की कुंडली के चतुर्थ भाव में पितृ दोष विद्यमान हो तो माता-पिता के सुख में कमी, मकान सम्बन्धी परेशानियाँ, घर की सित्रियाँ को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ सदैव बनी रहती है ।
4.यदि पितृ दोष किसी भी जातक की कुंडली में पांचवे भाव में घटित  हो रहा हो तो ऐसे जातक की विद्या में विघ्न , सन्तान के सुख में कमी , आर्थिक क्षेत्र में असफलताएँ , धन की कमी जातक को परेशान करती हैं ।
5.यदि किसी जातक के यह योग सप्तम भाव में घटित हो रहा हो तो ऐसे जातक के विवाह में बाधा और यदि विवाह हो भी जाए तो वैवाहिक सुख में कमी रहती है ऐसे जातक को व्यापार में अनेकों बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
6. यदि  पितृ दोष नवम भाव में हो भाग्य में कमी लता है उस जातक के बनते -२  कम बिगड़ जाते है और उस को आर्थिक क्षेत्र में असफलताओं  का साक्षात्कार करना पड़ता है , धन की सदैव कमी रहती है और जातक केवल अपने भाग्य को कोसता रहता है ।
7. यदि किसी जातक के पितृ दोष दशम भाव में घटित हो तो ऐसे जातक को सरकारी नोकरी नहीं मिलती , उसे हर कार्य में असफलताओं का मुख देखना पड़ता है ।

No comments:

Post a Comment